गुलाम वंश : कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश, रजिया सुल्तान, बलबन

ग़ुलाम वंश या मामलूक वंश की स्थापना 1206 ईo में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर हुयी। परन्तु इस वंश के सभी शासक गुलाम या दास नहीं थे। इल्तुतमिश को तो अपने मालिक कुतुबुद्दीन ऐबक से पहले ही दासता से मुक्ति मिल गयी थी। इसलिए गुलाम वंश को मामलूक वंश कहना ज्यादा ठीक रहेगा। स्वतंत्र माता-पिता की संतान जो आगे चलकर गुलाम बन जाते थे, वे मामलूक कहलाते थे।

कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-10 ईo) –

उपाधियाँ :- पीरबख्श, लाखबख्श, हातिम द्वितीय, कुरानख्वां, मालिक, सिपहसालार।

कुतुबुद्दीन ऐबक 1206 ईo में दिल्ली सल्तनत का शासक बना। परन्तु उसने साम्राज्य की राजधानी लाहौर को बनाया। इसे ही भारत में तुर्की साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। इसने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की और न ही अपने नाम का खुतवा पढ़वाया और न ही अपने नाम का सिक्का चलवाया। शासक बनने के तीन वर्ष बाद इसे गौर के सुल्तान से दासता मुक्ति पत्र प्राप्त हुआ। साथ ही एक छत्र हसन निजामी के हाथों भेजा। इसके माता पिता अत्यंत गरीब थे और बचपन में ही इसे निशापुर (ईरान) के काजी अब्दुल अजीज कोकी को बेच दिया था। काजी की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने इसे गजनी में गोरी के हाथों बेच दिया। गोरी के कोई पुत्र नहीं था अतः 1905 ईo में गोरी ने इसे अपना वली अहद (उत्तराधिकारी) घोषित किया। 1210 ईo में ऐबक की मृत्यु चौगान (हॉर्स पोलो) खेलते वक्त हो गयी।

आरामशाह (1210-11 ईo) –

ऐबक की मृत्यु के बाद आरामशाह लौहार की गद्दी पर मात्र 08 माह के लिए बैठा। कुछ इतिहासकारों के अनुसार ये ऐबक का पुत्र था, अबुल फजल इसे ऐबक का भाई बताता है। परन्तु मिन्हाज उस सिराज के अनुसार ऐबक की सिर्फ तीन पुत्रियाँ ही थीं। बाद में इल्तुतमिश ने इसे जूद की लड़ाई में हरा दिया और दिल्ली का शासक बना।

इल्तुतमिश (1211-36 ईo) –

इल्तुतमिश ऐबक का गुलाम व दामाद था। गजनी के बाजार में इसे खरीदने के लिए मोटी रकम गोरी नहीं दे पाया और गजनी के बाजार में इसकी बिक्री पर रोक लगा दी। बाद में ऐबक ने इसे अनिल्हवाड़ की लूट के पैसे से एक लाख जीतल में दिल्ली के बाजार से खरीदा। ऐबक ने इसे बदायूँ का इक्तादार बनाया। ऐबक की मृत्यु के बाद 1211 ईo में अली इस्माइल के निमंत्रण पर ये दिल्ली आया और स्वयं को सुल्तान घोषित किया। बाद में जूद की लड़ाई में अपने विद्रोहियों का दमन किया। शासक बनने के बाद इसके दो प्रतिद्वंदी यल्दौज (गजनी) और कुवाचा (सिंध व मुल्तान) थे। जनवरी 1216 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में इसने यल्दौज को परास्त कर दिल्ली सल्तनत को गजनी दासता से मुक्त कराया। यल्दौज को बंदी बनाकर बदायूँ लाया गया जहाँ आज भी उसकी कब्र है। 1217 ईo में इल्तुतमिश ने कुबाचा से लाहौर छीन लिया। 1227-28 में कुबाचा ने सिंधु नदी में डूबकर आत्महत्या कर ली।

इल्तुतमिश के काल में ही 1221 ईo में तिमोचिन (चंगेज खां) सिंधु नदी के तट पर आ गया। क्योंकि उसने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया था और वहां के शाह का पुत्र जलालुद्दीन मंगबरनी भाग कर भारत आ गया था। उसने इल्तुतमिश के पास शरण मांगने के लिए अपना दूत भेजा। परन्तु इल्तुतमिश ने उसका वध कर शरण देने से इंकार कर दिया। इल्तुतमिश ने 40 तुर्क गुलामों के एक दल चहलगानी/चालीसा का गठन किया। परंतु मिन्हाज सिर्फ 25 शम्सी अमीरों का ही विवरण देता है। इसने दिल्ली के मकबनपुर में अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद का मकबरा (सुल्तानगढ़ी) बनवाया। इसी के समय 1221 ईo में बख्तियार काकी दिल्ली आये। फरवरी 1229 में इसकी सत्ता को वगदाद के खलीफा  अल मुंतसिर बिल्लाह से वैद्यता मिली। इसने दरबार में दो सिंह की मूर्तियां बनबायीं और उनके मुँह में न्याय की जंजीर डाली। पेट में असहनीय दर्द के कारण 1236 ईo में इल्तुतमिश की मृत्यु हो गयी।

रुकनुद्दीन फिरोजशाह (1236 ईo) –

इल्तुतमिश के ज्येष्ठ व योग्य पुत्र नसीरुद्दीन की मृत्यु 1229 ईo में ही हो गयी। इस कारण इल्तुतमिश का द्वितीय पुत्र रुकनुद्दीन फिरोजशाह दिल्ली सल्तनत का शासक बना। हालाँकि इल्तुतमिश ने अपने जीवनकाल में ही रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। परन्तु तुर्की अमीर और शहतुर्कान (फिरोज की माँ) के षणयंत्र के कारण फिरोज को शासक बनाया गया।

जब फिरोज विद्रोह को दबाने कुहराम गया तो रजिया ने जुमे (शुक्रवार) की नमाज के बाद लाल वस्त्र (न्याय की मांग के प्रतीक) धारण कर जनता के सम्मुख गयी और पिता की अंतिम इच्छा को याद दिलाया। दिल्ली की जनता ने उसका समर्थन किया और उसे गद्दी पर स्थापित किया।

रजिया सुल्तान (1236-40 ईo) –

रजिया दिल्ली सल्तनत की प्रथम व अंतिम मुस्लिम महिला शासिका थी। उसका पूरा नाम जलालाॉत उद दिन रजिया था। ग्वालियर अभियान से बापस आकर इल्तुतमिश ने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। इसने तुर्की सरदारों के प्रभुत्व को कम करने हेतु एक अबीसीनियाई हब्सी मलिक जमालुद्दीन याकूब को अमीर-ए-आखूर के पद पर नियुक्त किया। इससे तुर्की अमीर क्रुद्ध हो गए और षणयंत्र करने लगे। इसके समय पहला विद्रोह लाहौर के इक़्तेदार कबीर खां ने और दूसरा विद्रोह भटिण्डा के सूबेदार अल्तूनिया ने किया। अल्तूनिया ने याकूब की हत्या कर दी और रजिया को तबरहिन्द में कैद कर लिया। इधर दिल्ली की गद्दी पर बहरामशाह को बिठा दिया गया। तब रजिया ने अल्तुनिया से शादी कर ली और दिल्ली पर अधिकार हेतु अभियान किया। परन्तु वे दिल्ली की संगठित सेना से पराजित हुए। अक्टूबर 1240 ईo में कैथल में डाकुओं ने रजिया व अल्तूनिया की हत्या कर दी। मिन्हाज के अनुसार उसका स्त्री होना ही उसके पतन का कारण था।

मुईजुद्दीन बहरामशाह (1240-42 ईo) –

बहरामशाह का सत्ता में आना ‘रजिया : एक स्त्री’ के शासिका बनने से कुंठित तुर्की अमीरों के षणयंत्रों का नतीजा था। बहरामशाह ने नायब-ए-मामलिकात के पद का सृजन किया। इस पद पर सबसे पहले इख्तियारुद्दीन ऐतगीन को नियुक्त किया। ऐतगीन ने इल्तुतमिश की पुत्री से विवाह कर लिया। बाद में बहरामशाह ने ऐतगीन की हत्या करवा दी। बाद में तुर्की अमीरों ने इसकी हत्या कर दी।

अलाउद्दीन मसूद शाह (1242-46 ईo) –

यह फ़िरोशाह का पुत्र व इल्तुतमिश का पौत्र था। सर्वप्रथम इसी के सिक्कों पर बगदाद के अब्बासी खलीफा अल-मुस्तसिम का नाम खुदा हुआ मिला। इसने नायब ए मामलिकात का पद कुतुबुद्दीन हसन को दिया। इसी के समय बलबन को अमीर ए हाजिब का पद प्राप्त हुआ। यही काल बलबन की शक्ति के अर्जन का समय था। बलबन की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं यहीं से पनपना शुरू हुईं। इसने नासिरुद्दीन और उसकी माँ के साथ मिलकर मसूदशाह को जेल में डाल दिया जहाँ उसकी मृत्यु हो गयी।

नासिरुद्दीन महमूद (1246-65 ईo) –

यह शम्सी वंश का अंतिम सुल्तान था। यह इल्तुतमिश का पौत्र था जो अपने पिता की मृत्यु के बाद पैदा हुआ था। इसीलिए इल्तुतमिश ने इसे इसके पिता का ही नाम दिया। इसी वजह से कुछ इतिहासकार इसे इल्तुतमिश का पुत्र भी कह देते हैं। इसी के समय हलाकू (मंगोल) के दूत दिल्ली आये। बलबन ने 1249 ईo में अपनी पुत्री हुजैदा का विवाह नासिरुद्दीन से कर दिया। बदले में इसे नायब का पद और 1246 ईo में मंगोलों के आक्रमण को विफल करने के कारण उलूग खां की उपाधि मिली। 1265 ईo में नासिरुद्दीन की मृत्यु हो गयी। मिन्हाज-उस-सिराज इसे दिल्ली का आदर्श सुल्तान कहता है। उसके द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध पुस्तक तबकात-ए-नासिरी उसके इसी आश्रयदाता को समर्पित है।

बलबन (1266-87 ईo) –

इल्तुतमिश के चहलगानी दल के सदस्यों में से एक बलबन 1287 ईo में गयासुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली का सुल्तान बना। यह इल्तुतमिश का दास था इसे और इसके भाई को बचपन में मंगोल पकड़ कर ले गए थे। इल्तुतमिश ने ग्वालियर विजय के बाद दिल्ली के बाजार से इसे खरीदा था। इल्तुतमिश ने इसे खासतार (अंगरक्षकों का प्रधान) का पद प्रदान किया। रजिया ने इसे अमीर-ए-शिकार, बहरामशाह ने अमीर-ए-आखूर, महमूद शाह ने अमीर-ए-हाजिब तथा नासिरुद्दीन ने इसे नायब का पद दिया। इस तरह बलबन ने कुल सात पदों पर कार्य करते हुए सुल्तान पद हासिल किया। “मलिक से ये खान हो गया और खान से सुल्तान हो गया।” बरनी के ये शब्द इसी सुल्तान के लिए कहे गए। इसने छत्र का प्रयोग नासिरुद्दीन के समय से ही करना प्रारम्भ कर दिया था। यह वसीयत घोषित करने वाला दिल्ली का पहला सुल्तान था। इसके ज्येष्ठ पुत्र मुहम्मद खां की मृत्यु 1286 ईo में मंगोल तमर से लड़ते हुए हो गयी। अमीर खुसरो ने अपने साहित्यक सफर की शुरुवात मुहम्मद खां के संरक्षण में ही की थी। इसके एक वर्ष बाद ही 1287 ईo में पुत्र वियोग में बलबन की भी मृत्यु हो गयी। इसी ने सर्वप्रथम नौरोज त्यौहार की शुरुवात भारत में की। यह स्वयं को अफरासियाब का वंशज कहता था। इसने स्वयं को जिल-ए-इलाही  कहा।

बलबन मृत्यु से पूर्व बुगरा खां को शासक बनाना चाहता था। परन्तु बुगरा खां बंगाल से बापस नहीं आया तो बलबन ने अपने प्रिय पुत्र मुहम्मद खां के पुत्र कैखुशरो को उत्तराधिकारी घोषित किया। परंतु दिल्ली के एक अधिकारी निजामुद्दीन ने कैकुवाद के हाथों कैखुशरो की हत्या करवा दी।

कैकुबाद (1287-90 ईo) –

यह बलबन का पौत्र और बुगरा खां का पुत्र था। यह सल्तनत काल के इतिहास की पहली घटना थी जब पिता के जीवित रहते हुए पुत्र को शासक बनाया गया हो। दो वर्ष बाद 1289 ईo में बुगरा खां अपने पुत्र से मिलने आता है (इसका जिक्र अमीर खुसरो ने किरान उस सादेन में किया है)। खुसरो कहता है कि पिता ने जब पुत्र को सिजदा और पैबोस किया तो कैकुबाद अत्यंत लज्जित हुआ और पिता के पैरों में गिर गया। परन्तु अपने भोग-विलास के कारण ये लकवाग्रस्त हो गया। दुर्बल शासक का फायदा उठा कर जलालुद्दीन खिलजी ने दिल्ली पर हमला कर कैकुबाद को कैद कर लिया। कुछ समय बाद उसकी हत्या कर दी।

शमशुद्दीन क्यूमर्स –

यह मात्र ढाई वर्ष की अवस्था में सुल्तान बना। इसकी हत्या जलालुद्दीन खिलजी ने कर दी और स्वयं सत्ता हथिया ली और ख़िलजी वंश की स्थापना की।

अगला वंश – खिलजी वंश

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