लोकोक्तियाँ किसी भाषा समूह के लोगों की पारस्परिक घटनाओं का परिणाम होती हैं। इनसे किसी न किसी कहानी का जुड़ाव होता है। कालांतर में ये लोगों द्वारा प्रचलित होती हैं और इनका क्षेत्रीय विस्तार होता है। लोकोक्तियाँ समाज का भाषाई इतिहास होती हैं। लोकोक्तियों को कहावतें भी कहते हैं।
लोकोक्तियां और मुहावरों में अंतर –
मुहावरा | लोकोक्तियाँ |
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मुहावरे अपना कोशगत/शाब्दिक अर्थ छोड़कर नया अर्थ देते हैं। | लोकोक्तियाँ विशेष अर्थ देती हैं, परन्तु उनका कोशगत अर्थ भी बना रहता है। |
मुहावरों के अंत में क्रियापद का होना पाया जाता है। | इनके अंत में क्रियापद का होना अनिवार्य नहीं। |
मुहावरा एक वाक्यांश होता है जिसका लिंग, वचन व क्रियापद कारक के अनुसार बदलता रहता है। | लोकोक्तियाँ स्वयं ही स्वतन्त्र वाक्य होती हैं। प्रयोग के बाद भी इनमे कोई फर्क नहीं आता। |
मुहावरों के अंत में अधिकतर ‘ना’ आता है। | लोकोक्तियों में ऐसा नहीं होता। |
इसमें उद्देश्य व विधेय का पूर्ण विधान नहीं होता। इसका अर्थ वाक्य में प्रयोग होने के बाद ही पता चलता है। | इसमें उद्देश्य व विधेय का पूर्ण विधान होता है। इनका अर्थ भी स्पष्ट होता है। |
मुहावरों और लोकोक्तियों में समानता :-
- दोनों की सार्थकता प्रयोग के बाद ही सिद्ध होती है।
- दोनों ही व्यापक और गंभीर अनुभव की उपज होते हैं।
- दोनों ही विलक्षण अर्थ प्रकट करते हैं।
- दोनों का ही काम भाषा शैली को सरल व प्रभावी बनाना है।
- दोनों में प्रयुक्त शब्दों के स्थान पर समानार्थी या पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग नहीं हो सकता।
कुछ प्रमुख लोकोक्तियाँ या कहावतें –
- अंधों में काना राजा – मूर्खों में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – अकेला आदमी लाचार होता है
- अधजल गगरी छलकत जाय – डींग हाँकना
- आँख का अँधा नाम नयनसुख – गुण के विरुद्ध नाम होना
- आँख के अंधे गाँठ के पूरे – मुर्ख परन्तु धनवान
- आग लागंते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ – नुकसान होते समय जो बच जाए वही लाभ है
- आगे नाथ न पीछे पगही – किसी तरह की जिम्मेदारी न होना
- आम के आम गुठलियों के दाम – अधिक लाभ
- ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरे – काम करने पर उतारू
- ऊँची दुकान फीका पकवान – केवल बाह्य प्रदर्शन
- एक पंथ दो काज – एक काम से दूसरा काम हो जाना
- कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली – उच्च और साधारण की तुलना कैसी
- घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध – निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाटा है, पर दूर का ज्यादा
- चिराग तले अँधेरा – अपनी बुराई नहीं दिखती
- जिन ढूंढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ – परिश्रम का फल अवश्य मिलता है
- नाच न जाने आँगन टेढ़ा – काम न जानना और बहाने बनाना
- न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी – न कारण होगा, न कार्य होगा
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात – होनहार के लक्षण पहले से ही दिखाई पड़ने लगते हैं
- जंगल में मोर नाचा किसने देखा – गुण की कदर गुणवानों बीच ही होती है
- कोयल होय न उजली, सौ मन साबुन लाई – कितना भी प्रयत्न किया जाये स्वभाव नहीं बदलता
- चील के घोसले में माँस कहाँ – जहाँ कुछ भी बचने की संभावना न हो
- चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले – ताकतवर आदमी से दो लोग भी हार जाते हैं
- चंदन की चुटकी भरी, गाड़ी भरा न काठ – अच्छी वास्तु कम होने पर भी मूल्यवान होती है, जब्कि मामूली चीज अधिक होने पर भी कोई कीमत नहीं रखती
- छप्पर पर फूंस नहीं, ड्योढ़ी पर नाच – दिखावटी ठाट-वाट परन्तु वास्तविकता में कुछ भी नहीं
- छछूंदर के सर पर चमेली का तेल – अयोग्य के पास योग्य वस्तु का होना
- जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई – धनी व्यक्ति के सब मित्र होते हैं
- योगी था सो उठ गया आसन रहा भभूत – पुराण गौरव समाप्त