मौर्योत्तर काल के वंश : शुंग वंश, कण्व, सातवाहन, वाकाटक, चेदि वंश

मौर्योत्तर काल के वंश और शासक – अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने 185 BC के करीब सेना का निरीक्षण करते वक्त कर दी और एक नए राजवंश शुंग वंश की स्थापना की।

शुंग वंश 

इस वंश के कुल 10 शासक हुए – पुष्यमित्र शुंग – अग्निमित्र- सुजेष्ठ – वसुमित्र- धनभूति – काशीपुत्र भागभद्र – देवभूति (अंतिम)

पुष्यमित्र शुंग-

यह पुष्यधर्म का पुत्र था।  यह कट्टर भाह्मणवादी था इसने कई बौद्ध विहारों को नष्ट किया, भिक्षुओं की हत्या की लेकिन भरहुत स्तूप बनबाया।

इसने अपने शासनकाल में दो अश्वमेद्य यज्ञ कराये जिन यज्ञों के पुरोहित पतंजलि थे।

कालिदास के मालविकाग्निमित्रम में पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र और यज्ञसेन की चचेरी बहन मालविका की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है। यज्ञसेन को शुंगों का स्वभाविक शत्रु भी कहा जाता है।

पुष्यमित्र शुंग कलिंग नरेश खारवेल से पराजित हुआ जिसकी जानकारी खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से प्राप्त होती है।

भागभद्र/भागवत –

भागभद्र के शासनकाल के 14 वें वर्ष हेलियडोटस ने विदिशा में वासुदेव के सम्मान में गरुण स्तम्भ स्थापित किया। हेलियोडोरस तक्षशिला के यवन शासक एण्टियलकीट्स का राजदूत था।

मनुस्मृति के वर्त्तमान स्वरूप की रचना इसी युग में हुयी और संस्कृत भाषा का भी पुनरुत्थान हुआ।

देवभूति –

शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति की हत्या उसके सचिव वासुदेव ने 75 BC कर दी और कण्व वंश की स्थापना की। इसकी जानकारी महाकवि वाण के हर्षचरित्र से प्राप्त होती है।

कण्व वंश 

इस वंश में चार शासक हुए – वासुदेव – भूमिमित्र – नारायण – सुशर्मा

अंतिम कण्व शासक सुशर्मा की हत्या 30 ईo पूo सिमुक ने कर दी और एक नए राजवंश आंध्र सातवाहन वंश की नीवं रखी।

आंध्र सातवाहन वंश 

इस वंश का मूल निवास स्थान प्रतिष्ठान/पैठान (महाराष्ट्र) था और इसके शासक दक्षिणाधिपति व इनके द्वारा शासित प्रदेश दक्षिणापथ कहलाया। इन राजाओं की सबसे लम्बी सूची मत्स्य पुराण में मिलती है।

इनकी प्रारंभिक राजधानी – धान्यकटक (अमरावती) थी।

शातकर्णि प्रथम –

शातकर्णि प्रथम की पत्नी नागनिका ही भारत की प्रथम महिला शासिका थी।

पुराणों में इसे कृष्ण का पुत्र कहा गया है।

इसने दो अश्वमेद्य यज्ञ और एक राजसूय यज्ञ कराया।

हाल ने गाथासप्तशती नामक मुक्तकाव्य की रचना की।

गौतमीपुत्र शातकर्णि (106-130 ईo) 

इसे वर्णव्यवस्था का रक्षक और अद्वितीय ब्राह्मण कहा जाता है। इसने वेणकटक की उपाधि धारण की थी। इसके घोड़े तीन समुद्र का पानी पीते थे।

इसके विजयों की जानकारी गौतमी बालश्री के नासिक अभिलेख से प्राप्त होती है। इसने शक शासक नहपान को हराया।

यह इस वंश का 23 वां शासक था।

वशिष्ठीपुत्र पुलवामी-

इसे प्रथम आंध्र सम्राट भी कहा जाता है।

इसने शक शासक रुद्रदामन को दो बार हराया।

यज्ञश्री शातकर्णि-

इसके सिक्कों पर जहाज/नाव के चित्र मिलते हैं।

पुलोमा/पुलमावि चतुर्थ-

इसके समय सातवाहन राज्य छिन्न भिन्न हो के 5 गौड़ शाखाओं में विभक्त हो गया –

  1. वाकाटक
  2. चतु वंश
  3. पल्लव
  4. इच्छवाकु
  5. आभीर

वाकाटक वंश

विंध्यशक्ति- 

प्रवरसेन प्रथम- 

इसने चार अश्वमेद्य यज्ञ और एक वाजपेय यज्ञ किया।

यही एक वाकाटक शासक था जिसने सम्राट की उपाधि धारण की।

रुद्रसेन द्वितीय –

चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह रुद्रसेन द्वितीय से किया इसी से इसका पुत्र प्रवरसेन द्वितीय उत्पन्न हुआ। 

प्रवरसेन द्वितीय-

चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने इसके दरबार में कालिदास को भेजा।

चेदि वंश (कलिंग)

कलिंग के चेदि वंश का संस्थापक महामेघवाहन था और इस वंश का सबसे महान शासक उसका पौत्र खारवेल था।

खारवेल-

16 वर्ष की अल्पायु में युवराज घोषित किया जाता है और 24 वें वर्ष इसका राज्याभिषेक होता है। महाराज की उपाधि धारण करने वाला प्रथम भारतीय शासक है। इसने अपने राज्याभिषेक के 8 वें वर्ष भारतवर्ष पर आक्रमण किया।

बृहस्पतिमित्र को हराकर आदि-जिन की मूर्ति को पुनः बापस लाया।

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