समास की परिभाषा एवं प्रकार – समास का अर्थ होता है ‘संक्षेप’, कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ प्रकट करना समास का प्रमुख प्रयोजन है। समास कम से कम दो शब्दों के योग से बनता है। समास में पदों के प्रत्यय समाप्त कर दिए जाते हैं।
संधि और समास में अंतर :-
- जहाँ संधि में दो वर्णों का मेल होता है, वहीं समास में दो पदों का मेल होता है।
- संधि को तोड़ने को ‘विच्छेद’ कहते हैं जबकि समास को तोड़ने को ‘विग्रह’ कहा जाता है।
- हिंदी में संधि केवल तत्सम पदों में ही होती है, लेकिन समास संस्कृत तत्सम, हिंदी व उर्दू हर प्रकार के पदों में होता है।
समास के भेद :-
हिंदी में समास का अनुशीलन संस्कृत व्याकरण से किया गया है। इस सन्दर्भ में हिंदी की प्रकृति संस्कृत से अनुकूलता रखती है। समास के भेद कुछ इस प्रकार हैं।
1- अव्ययीभाव –
इस समास में पूर्व पद की प्रधानता होती है और सामासिक या समास पद अव्यय हो जाता है। इस समास का समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है।
अव्ययीभाव समास के उदाहरण –
प्रतिदिन, दिनानुदिन, यथाशक्ति, यथार्थ, यथासम्भव, यथाशक्ति, निर्भय, मनमाना, प्रत्येक, आपादमस्तक, आजन्म, आमरण, बेकाम, भरसक, व्यर्थ, प्रत्यंग, बेरहम, बेखटके, बेफायदा, बखूबी, समक्ष, परोक्ष, प्रत्यक्ष, भरपेट, प्रत्यंग, प्रत्युपकार…
2- कर्मधारय –
जिस तत्पुरुष समास के समस्त होने वाले पद समानाधिकरण हों, मतलब विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों। ‘कर्ता’ कारक के हों और लिंग व वचन में सामान हों। वहाँ “कर्मधारय तत्पुरुष समास” होता है। इस समास में कभी पहला पद तो कभी दूसरा पद और कभी दोनों पद विशेषण या विशेष्य होते हैं।
कर्मधारय के 4 भेद होते हैं :- विशेष्य पूर्व पद, विशेषण पूर्व पद, विशेषणोभय पद, विशेष्योभय पद।
कर्मधारय समास के उदाहरण –
पीताम्बर, चरणकमल, नीलोत्पल, नीलपीत, घनश्याम, लौहपुरुष, परमेश्वर, महात्मा, नरसिंह, महावीर, पदपंकज, महाकाव्य, सज्जन, वीरबाला, महापुरुष, सन्मार्ग, सद्भावना, नवयुवक, श्यामसुन्दर, मदनमोहन, कृताकृत, शीतोष्ण, आम्रवृक्ष, कुसुमकोमल, मुखचन्द्र, विद्यारत्न, पुत्ररत्न…
3- द्विगु –
जिस समास का पूर्व पद संख्या बोधक हो वह द्विगु समास कहलाता है।
द्विगु समास के उदाहरण –
पंचवटी, अष्टध्यायी, त्रिकाल, त्रिभुवन, चवन्नी, पासेरी, नवग्रह, त्रिपाद, त्रिगुण…
4- द्वंद्व –
इस समास के सभी पद प्रधान होते हैं।
द्वंद्व समास के उदाहरण –
राधाकृष्ण, शिवपार्वती, गौरीशंकर, देवासुर, भाईबहन, धर्माधर्म, भलाबुरा, सीताराम, लेनदेन, पापपुण्य, दालभात, देशविदेश, हरिशंकर, धनुषवाण, लाभालाभ…
5- बहुब्रीहि –
जब समास में दिए गए दोनों पदों को छोड़कर किसी अन्य पद की प्रधानता हो वहां पर बहुब्रीहि समास आता है।
बहुब्रीहि समास के उदाहरण –
चतुर्भुज, पीताम्बर, दिगम्बर, जितेन्द्रिय, चतुरानन, दशानन, सहस्त्रानन, शांतिप्रिय, वज्रायुध, निर्धन, लम्बोदर, निर्जन, बेरहम, सपरिवार, सचेत, सबल, वीणापाणि, शूलपाणि, चन्द्रभाल, चंद्रवदन, गोपाल…
6 – तत्पुरुष –
तत्पुरुष समास का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। इस समास का अंतिम पद ( जोकि विशेष्य होता है ) प्रधान होता है। साधारणतः इस समास का प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य होता है। इस समास के तीन भेद ( तत्पुरुष, कर्मधारय और द्विगु ) और 6 उपभेद होते हैं।
तत्पुरुष समास के उदाहरण-
कर्म तत्पुरुष – गगनचुम्बी, गिरहकट, पाकिटमार
करण तत्पुरुष – रसभरा, रोगग्रस्त, तुलसीकृत, शोकाकुल, शोकग्रस्त, कामचोर, श्रमजीवी, अकालपीड़ित, मुँहमाँगा, मदान्ध, रोगपीड़ित, मेघाच्छन्न, प्रेमशक्ति, जलशक्ति, मदमाता…
सम्प्रदान तत्पुरुष – रसोईघर, देशभक्ति, लोकहितकारी, स्नानघर, विधानसभा, सभाभवन, देवालय, गोशाला, ब्राह्मणदेय, मार्गव्यय, साधुदक्षिणा…
अपादान तत्पुरुष – पदच्युत, पापमुक्त, लोकोत्तर, ऋणमुक्त, बलहीन, नेत्रहीन, शक्तिहीन, धनहीन, पथभ्रष्ट, व्ययमुक्त, धर्मविमुख, प्रेमरिक्त, जलरिक्त…
सम्बन्ध तत्पुरुष – राष्ट्रपति, हिमालय, पुस्तकालय, अन्नदाता, राजभवन, रामायण, देशसेवा, राजगृह, राजदरबार, सभापति, सेनानायक, राजपुत्र, ग्रामोद्धार, गुरुसेवा, विद्यासागर, अमरस, चरित्रचित्रण, चंद्रोदय, प्रेमोपासक, त्रिपुरारि, वीरकन्या, श्रमदान…
अधिकरण तत्पुरुष – पुरुषोत्तम, आत्मनिर्भर, क्षत्रियाधम, शरणागत, हरफनमौला, ग्रामवास, शस्त्रप्रवीण, दानवीर, गृहप्रवेश, ध्यानमग्न, कविश्रेष्ठ, नराधम, रणशूर, मुनिश्रेष्ठ…