शेर शाह सूरी व द्वितीय अफगान वंश या सूर वंश

शेर शाह सूरी व द्वितीय अफगान वंश या सूर वंश –

प्रारंभिक जीवन :-

शेर शाह सूरी ( Sher Shah Suri ) का जन्म 1472 ईo में हिसार फिरोजा के बजवाड़ा / होशियारपुर में हसन खां सूर की अफगान पत्नी के गर्भ से हुआ था। इसके बचपन का नाम फरीद था। इसके पिता को सहसराम और खवासपुर की जागीर प्राप्त थी। फरीद की प्रशासनिक कुशलता को देखकर उसके पिता ने अपनी जागीर प्रबंधन का कार्य इसे सौंप दिया। लेकिन फरीद उसे छोड़कर दौलतखां की सेवा में आ गया। इसके द्वारा एक शेर मार देने के कारण मुहम्मदशाह ( बहार खां लोहानी ) ने इसे शेर खां की उपाधि दी। साथ ही अपने पुत्र जलाल खां का संरक्षक नियुक्त किया।

विवाह :-

बहार खां लोहानी की मृत्यु के बाद शेरखां ने उसकी विधवा दूदू बेगम से विवाह कर लिया। 1530 ईo में चुनार के किलेदार ताजखान की विधवा लाडमलिका से विवाह किया। इससे इसे अत्यधिक संपत्ति तो प्राप्त हुयी साथ ही चुनार के किले पर भी अधिकार हो गया।   

सैनिक के रूप में

1528 ईo की चंदेरी की लड़ाई में वह बाबर की सेना में शामिल हुआ और युद्ध लड़ा। 1529 ईo के घाघरा के युद्ध में इसने पाला बदल लिया और महमूद लोदी से जा मिला। इसी समय बाबर ने हुमायूँ को इससे सतर्क रहने की सलाह दी थी। 1529 ईo में बंगाल के शासक नुसरतशाह को पराजित कर हजरते आला की उपाधि धारण की।  

राज्याभिषेक

बिलग्राम/कन्नौज की लड़ाई में जीत हासिल करने के बाद 1540 ईo में शेरखां शेरशाह सूरी के नाम से शासक बना। इस तरह इसने सूर वंश या द्वितीय अफगान साम्राज्य की नींव रखी। 

हुमायूँ से युद्ध

शेरशाह के अभियान

शेरशाह एक महत्वाकांक्षी शासक था उसने अपने 5 वर्ष के छोटे से शासनकाल में बहुत से अभियान, प्रशासनिक कार्य व लोक निर्माण के कार्य किये।

पंजाब अभियान :-

पंजाब अभियान शेरशाह का पहला अभियान था। शेरशाह ने 1540 ईo में कामरान से पंजाब को जीत लिया।

लाहौर अभियान :-

शेरशाह ने नवंबर 1540 ईo में लाहौर पर अधिकार कर लिया।

गक्खरों से युद्ध :-

पश्चिमोत्तर सीमा पर गक्खर जाति के लोग बहुत वीर व साहसी थे। वे यहाँ लूट-पाट किया करते थे। 1541 ईo में शेरशाह का गक्खरों से युद्ध हुआ। वह इनका पूरी तरह से दमन न कर सका। परन्तु इसके लिए इसने पश्चिमोत्तर सीमा पर रोहतासगढ़ के किले का निर्माण कराया। 

मालवा का अभियान :-

इस समय मालवा कमजोर व बिखरा पड़ा था। स्थिति का फायदा उठाकर शेरशाह ने 1542 ईo में मालवा पर आक्रमण कर अपने अधिकार में ले लिया। 

बंगाल अभियान :-

1542 ईo में बंगाल अभियान कर बंगाल के सूबेदार खिज्र खां के विद्रोह का दमन किया। काजी फजीलात को बंगाल का सूबेदार (अमीन ए बंगाल) नियुक्त किया।

रायसीन का अभियान :-

1543 ईo में शेरशाह ने रायसीन पर आक्रमण किया। रायसीन अभियान शेरशाह के चरित्र पर एक कलंक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शेरशाह ने इस शर्त पर समर्पण करवाया था कि उसे व उसके परिवार को सुरक्षित जाने देगा। परंतु इसने धोखे से शासक पूरनमल और तमाम स्त्री व बच्चों को मार डाला था। स्त्रियों ने जौहर कर लिया। इस घटना को शेरशाह ने जेहाद की संज्ञा दी। इस घटना से कुतुबखां को इतनी शर्म महसूस हुयी कि उसने आत्महत्या कर ली।

मारवाड़ का अभियान या सेमल का युद्ध :-

1544 ईo में शेरशाह ने मारवाड़ के शासक मालदेव पर आक्रमण किया। यह अभियान शेरशाह के सभी अभियानों में सर्वाधिक कठिन था। अंत में इसे जीतने के लिए शेरशाह ने कूटनीति का सहारा लिया। इस युद्ध में वह राजपूतों के शौर्य से इतना प्रभावित हुआ। उसने कहा “मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए लगभग हिंदुस्तान का साम्राज्य खो चुका था”। 1544 ईo में ही चित्तौड़ पर आक्रमण किया। चित्तौड़ के राणा उदयसिंह ने दुर्ग की चाबियाँ भिजवा दीं। 

कालिंजर का अभियान व शेरशाह की मृत्यु :-

यह शेरशाह के शासनकाल और जीवनकाल दोनों का अंतिम अभियान था। कालिंजर के किले को बुन्देलखण्ड की कुंजी कहा जाता था। माना जाता है शेरशाह ने यह अभियान एक नर्तकी को पाने के लिए किया। जिसे राजा कीरत सिंह ने देने से इनकार कर दिया था। इसके अतिरिक्त कीरत सिंह ने रीवा के राजा वीरभान बघेला को शरण दे रखी थी। किले की दीवार को तोड़ने के लिए गोला-बारूद से उड़ा देने की आज्ञा दी। उक्का नामक तोप के फटने से एक गोला किले की दीवार से टकराकर बारूद के ढेर में जा गिरा। इससे भयंकर आग लग गयी जिसमे शेरशाह बुरी तरह झुलस गया। कालिंजर की जीत की खबर पाने के बाद 22 मई 1545 ईo को शेरशाह की मृत्यु हो गयी। इसकी मृत्यु के बाद इसका छोटा पुत्र जलाल खां ( उपाधि: इस्लामशाह ) शासक बना।  

शेरशाह द्वारा किये गए सार्वजानिक कार्य :-

  • शेरशाह का मकबरा सासाराम में एक झील के मध्य ऊँचे टीले पर निर्मित किया गया है।
  • कबूलियत व पट्टा लिखाने की शुरुवात इसी ने की।
  • इसने दिल्ली में किला ए कुहना मस्जिद का निर्माण कराया।
  • 1541 ईo में पाटलिपुत्र को पटना के नाम से पुनर्व्यवस्थित किया। 
  • डाक प्रथा का प्रचलन भी इसी के द्वारा किया गया।
  • शेरशाह ने बहुत सी सड़कों का निर्माण कराया। पहली सड़क को ‘सड़क ए आजम‘ कहा गया। लॉर्ड ऑकलैंड ने इसी का नाम बदलकर जी. टी. रोड रख दिया।
  • इन्हीं मार्गों के किनारे 1700 सरायें बनवायीं। सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाए।
  • कानूनगो ने इन सरायों को ‘साम्राज्य रुपी शरीर की धमनियाँ’ कहा।
  • शिकदारों की देखभाल के लिए एक असैनिक पद अमीन ए बंगला ( अमीर ए बंगाल ) की नियुक्ति की। इस पद पर सर्वप्रथम काजी फजीलत को नियुक्त किया।
  • इसने 178 ग्रेन चाँदी का रूपया और 380 ग्रेन ताँबे का दाम चलाया।
  • मलिक मुहम्मद जायसी इसी के समकालीन थे।
  • “कर निर्धारण में उदार रहो लेकिन बसूली में कठोर”।

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