औरंगजेब के काल में जिस मराठा क्षेत्र को मराठा शक्ति के रूप में छत्रपति ने एक शक्ति के रूप में स्थापित किया कुछ समय बाद वह शक्ति मराठा छत्रपति से पेशवा में समाहित हो गयी और अब ये शक्ति छत्रपति की जगह पेशवा के नेतृत्व में आ गयी। शुरुवात में पेशवा शिवाजी की अष्टप्रधान नाम की मंत्रिपरिषद का एक मंत्रिमात्र था। परन्तु छत्रपति राजाराम द्वितीय और बालाजी बाजीराव द्वितीय के मध्य 1750 ईo में हुयी संगोला की संधि के तहत अब मराठा संघ की वास्तविक शक्ति पेशवा के हाथों में आ गयी और अब छत्रपति नाम मात्र का ही मराठा प्रधान रह गया और उसकी सत्ता सतारा के किले मात्र तक सीमित रह गयी।
पेशवा
बालाजी विश्वनाथ (1713-20) –
बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक माना जाता है। बालाजी विश्वनाथ एक ब्राह्मण था जिसने अपना जीवन एक राजस्व अधिकारी के रूप में प्रारम्भ किया था। बाद में ये 1696 में पूना के सभासद बने और 1713 ईo में शाहूजी ने इन्हे पेशवा नियुक्त किया। 1719 ईo में इन्होने सैय्यद हुसैन अली (मुग़ल) के साथ संधि की जिसे रिचर्ड टेम्पल ने मराठों का मैग्नाकार्टा कहा।
बाजीराव प्रथम (1720-40)-
बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बालाजी प्रथम पेशवा बना। यह सर्वश्रेष्ठ सेनापति साबित हुआ। इसे लड़ाकू पेशवा और शक्ति का अवतार भी कहा जाता है।
- शिवाजी के बाद इसी पेशवा ने गुरिल्ला युद्ध को अपनाया।
- इसने मुगलों के विरुद्ध अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था “हमें इस जर्जर वृक्ष के तने पर प्रहार करना चाहिए, पत्तियां तो स्वयं ही गिर जाएँगी “
- इसने हिन्दू पद पादशाही के आदर्श का प्रचार किया और इसे लोकप्रिय बनाया।
- 7 मार्च 1728 को पालखेड के समीप निजामुलमुल्क को पराजित किया और उससे मुंगी शिवागांव की संधि की
- इसने 1733 में जंजीरा के सिद्दियों के विरुद्ध अभियान चलाया।
- 1738 ईo में बालाजी प्रथम ने गुजरात को मराठा राज्य में मिला लिया इसके अतिरिक्त मालवा और बुंदेलखंड को भी जीता।
- 1739 ईo में मराठों(चिमनाजी) ने पुर्तगालियों से उनकी राजधानी बसीन छीन ली और बसीन की संधि की।
- 28 अप्रैल 1740 को नर्मदा नदी के तट पर 40 वर्ष की कम आयु में ही इनका निधन हो गया।
बालाजी बाजीराव/नाना साहब (1740-61) –
यह 20 वर्ष की आयु में पेशवा बना और अपने सम्पूर्ण शासनकाल में अपने चचेरे भाई सदाशिव राव भाऊ के मार्गदर्शन और नेतृत्व में ही शासन करता रहा।
- इसी ने मराठा शासक राजाराम द्वितीय से संगौला समझौता कर शासन के सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए।
- इसके शासनकाल में मराठा साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ और मुग़ल बादशाह इनके हाथो की कठपुतली बन गया।
- 1752 ईo की भलकी/झलकी की संधि के तहत निजाम ने मराठो को बरार का आधा भाग देना स्वीकार किया।
पानीपत की तृतीय लड़ाई ( 14 जनवरी 1761 )
यह लड़ाई मराठा और अहमदशाह अब्दाली (अफगानिस्तानी) के बीच हुयी जिसमे मराठा शक्ति हार गयी। जब अब्दाली ने सिंधु नदी पार कर पंजाब को जीत लिया तो साबाजी और दत्ता जी उसे रोकने में असफल रहे और फिर जनकोजी सिंधिया और मल्हार राव होल्कर भी उसे रोकने में असफल रहे। अब पेशवा ने सदाशिव भाऊ को दिल्ली भेजा और सदाशिव भाऊ ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया। 14 जनवरी 1761 को पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में दोनों सेनाएं आपने सामने खड़ी थी। युद्ध प्रारम्भ हुआ और अंत तक मराठा सेना हार गयी। इब्राहीम खां गार्दी ने इस युद्ध में मराठा तोपखाने का नेतृत्व किया। मल्हार राव होल्कर युद्ध के बीच ही भाग निकला।
- इस युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी काशीराम पंडित थे।
- इस युद्ध में नजीबुद्दौला, शुजाउद्दौला, सहदुल्ला खां और हाफिज रहमत ने अब्दाली का साथ दिया।
- इस युद्ध के सदमे को बालाजी बाजीराव सहन नहीं कर पाया और उसकी मृत्यु हो गयी।
माधव राव (1761-72) –
पानीपत की हार में मराठों की खोयी हई प्रतिष्ठा को इसने फिर से स्थापित किया।
- इसी के काल में मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय 1772 में अंग्रेजों का संरक्षण छोड़ कर इलाहबाद से दिल्ली आ गया और मराठों का संरक्षण स्वीकार कर लिया।
- 1772 में इसकी मृत्यु क्षय रोग से हो गयी।
- माधवराव अंतिम महान पेशवा था।
- इसकी मृत्यु के बाद से ही मराठा साम्राज्य का पतन प्रारम्भ हो गया।
नारायण राव (1772-1773)-
माधवराव की मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई पेशवा बना लेकिन उसके चाचा रघुनाथ राव ने स्वयं पेशवा बनने के लिए उसकी हत्या 1773 में ही कर दी।
माधव नारायण राव (1774-95) –
नारायण राव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र माधव नारायण राव पेशवा नियुक्त किया गया।
- इसी के समय से अंग्रेजो का मराठों से संघर्ष प्रारम्भ हुआ।
- 7 मार्च 1775 को रघुनाथ राव और बम्बई सरकार के बीच सूरत की संधि हुयी।
प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध (1775 -82)
18 मई 1775 को अंग्रेजो और मराठो के मध्य आरस के मैदान में भीषण युद्ध हुआ। इसमें मराठा पराजित हुए।
पुरंदर की संधि (1 मार्च 1773) –
कलकत्ता काउंसिल ने बम्बई सरकार की सूरत की संधि को स्वीकार नहीं किया। कलकत्ता की ब्रिटिश सरकार की ओर से वारेन हेंस्टिंग्स ने पूना दरबार में कर्नल अप्टन को भजकर यह संधि कर ली। पुरंदर की संधि की शर्तें निम्नलिखित थीं –
- इसके तहत सूरत की संधि को रद्द कर दिया गया।
- अंग्रेजों द्वारा भडौंच व साष्टी के राजस्व को रखने की बात स्वीकर ली गई।
- युद्ध हर्जाने के रूप में 12 लाख रुपये पूना संरक्षण समिति अंग्रेजों को देगी।
- अंग्रेजों ने रघोवा के पक्ष को छोड़ दिया। रघोवा का अंग्रेजों से 25 हजार रुपये मासिक पेंशन लेकर कोपर गाँव (गुजरात) में रहना तय हुआ।
परंतु यह संधि कार्यान्वित न हो सकी। अंग्रेजी सरकार ने रघोवा के पक्ष को नहीं छोड़ा और उसे संरक्षण देती रही। इसके बाद फिर बम्बई सरकार ने युद्ध छेड़ दिया। 9 जनवरी 1779 को पश्चिमी घाट में तालगाँव की लड़ाई में अंग्रेज पराजित हुए।
बड़गॉव की संधि(1779) –
यह संधि अंग्रेजों और पूना दरबार के बीच हुई। अंग्रेजों के लिए ये संधि अपमानजनक थी। इस संधि की शर्तें –
- इसके तहत 1773 ई. से बम्बई सरकार द्वारा जीती गई सारी जमीर लौटा दी जाएगी।
- बंगाल से पहुँचने वाली फौज हटा ली जाएगी।
- भड़ौच के राजस्व का एक भाग सिंधिया को मिलेगा।
हेंस्टिंग्स ने इस अपमानजनक संधि को मानने से इनकार कर दिया। उसने कर्नल गोडार्ड के नेतृत्व में बंगाल से एक सेना भेजी।
सालबाई की संधि (1782) –
यह संधि महादजी सिंधिया की मध्यस्थता से अंग्रेजों व पूना दरबार के बीच 17 मई 1782 को हुई। इस संधि की शर्तें –
- माधव नारायण राव को पेशवा स्वीकार कर लिया गया।
- सालसेट द्वीप व थाना का दुर्ग अंग्रेजों को दे दिया।
- अंग्रेजों ने रघोवा का साथ छोड़ दिया। उसे साढ़े तीन लाख रुपये की वार्षिक पेंशन दी गई।
- यमुना के पश्चिम की सारी भूमि बापस सिंधिया को मिल गई।
- अरकाट के नबाव से जीती हुई भूमि हैदर अली को छोड़नी पड़ी। हालांकि हैदर अली इस संधि में शामिल नहीं था।
बाजीराव द्वितीय 1795-1818) –
माधव नारायण राव के बाद रघुनाथ राव का पुत्र बाजीराव द्वितीय के नाम से पेशवा बना।
31 दिसंबर 1802 को अंग्रेजो के साथ बसीन की संधि की।
- इस संधि के तहत पेशवा ने अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर लिया और एक अंग्रेजी सेना को पूना में रखने की बात स्वीकार की।
- सूरत कंपनी को दे दिया।
द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध (1803-05)
अंग्रेजो ने अब मराठा शक्ति के सभी केंद्रों पर आक्रमण करने का निर्णय किया जिसे दो गुटों में विभाजित करके किया जाना तय हुआ। दक्कन में आर्थर वेलेजली के नेतृत्व में और जनरल लेक के नेतृत्व में उत्तर भारत में।
देवगांव की संधि – 17 दिसंबर 1803
तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध (1817 -18 )
यह आंग्ल मराठा युद्ध का अंतिम चरण था जिसे हेस्टिंग्स ने शुरू किया।
पूना की संधि (13 जून 1817)
यह संधि एल्फिंस्टन से की गयी।
ग्वालियर की संधि (5 नवम्बर 1817)