विदेशी आक्रमण और विदेशी शासक व आक्रमणकारी

भारत प्राचीन काल से अपनी आर्थिक समृद्धि और भौतिक सम्पदाओं के लिए विश्व विख्यात रहा है यही कारण है पहले हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था और यही वजह रही है कि विदेशी आक्रांताओं के लिए हमारा देश हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है। यहाँ अलग अलग समय पर अलग अलग क्षेत्र से विदेशी शासक और आक्रमणकारी आते रहे हैं और यहाँ के धन वैभव को लूटने की कोशिश करते आए हैं तो कभी यहाँ साम्राज्य हथियाने की कोशिश करते आये हैं। आइये जानते हैं विदेशी आक्रमणकारियों के बारे मे क्रमबद्ध तरीके से –

भारत पर सबसे पहले विदेशी आक्रमण पर्शिया/ईरान के हखामनी साम्राज्य की ओर से होने के साक्ष्य मिलते हैं।

पर्शिया/ईरान का हखामनी साम्राज्य

साइरस द्वितीय –

सिंध के पश्चिम में भारत के सीमावर्ती क्षेत्र को जीता और कपिशा नगर को ध्वस्त किया।

दारा प्रथम/ डेरियस/डायरवहु-

इसने भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता प्राप्त की, 516 ईo पूo सर्वप्रथम गांधार को जीतकर फ़ारसी साम्राज्य में मिलाया।

हेरोडोटस कहता है कि भारत का पश्चिमोत्तर क्षेत्र दारा के साम्राज्य का 20वां प्रान्त था।

भारत अभियान में उसका नौसेनाध्यक्ष स्काईलैक्स भी शामिल था।

जरक्सीज/क्षयार्ष –

इसने अपनी फ़ौज में भारतीयों को भी भर्ती किया परन्तु ये यूनानियों से हार गया।

दारा तृतीय –

सिकंदर ने इसे अरबेला गौगामेला के युद्ध में 331 ईo पूo बुरी तरह हरा दिया।

यूनानी/ ग्रीक

ईरानी साम्राज्य के शासक को पराजित कर अब यूनानी मुख्य शक्ति के रूप में सामने आये –

फिलिप द्वितीय 359 ईo पूo मकदूनिया का शासक बनता है परन्तु 329 ईo पूo उसकी हत्या कर दी जाती है।

सिकंदर महान –

सिकंदर 20 वर्ष की आयु में मकदूनिया का शासक बनता है।

भारत पर आक्रमण :- 326 ईo पूo बल्ख/बैक्ट्रिया (वर्तमान में अफगानिस्तान में) को जीतकर काबुल होता हुआ खैबर दर्रे (हिन्दुकुश पर्वत) को पार कर भारत आया।

तक्षशिला के शासक आम्भी ने सिकंदर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया उसका स्वागत किया और सहयोग भी किया।

कुछ विद्वानों का मानना है कि आम्भी और शशिगुप्त(हिन्दुकुश का शासक) ने ही सिकंदर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था।

पोरस से युद्ध :-

पंजाब के शासक पोरस से हाइडेस्पीज या झेलम (वितस्ता) का युद्ध हुआ।

इस समय अस्सक/अश्वक (राजधानी-मस्सग) एक सीमान्त गणराज्य था यहाँ के पुरुष सैनिक मारे जाने के बाद यहाँ की स्त्रियों ने शस्त्र धारण किये। सिकंदर ने सभी स्त्रियों को मौत के घाट उतार दिया।

सिकंदर भारत में कुल 19 माह तक रहा उसके बाद सेना ने व्यास नदी पार करने से मना कर दिया तो वह अपने विजित क्षेत्रों को अपने सेनापति फिलिप को सौंप कर स्थल मार्ग से 325 ईo पूo बापस चला गया। रास्ते में बेबीलोन में 323 ईo पूo 33 वर्ष की अवस्था में सिकंदर की मृत्यु हो गयी।

उसने विजय के उपलक्ष्य में निकैया और अपने प्रिय घोड़े के नाम पर बुकफला नामक दो नगरों की स्थापना की।

सिकंदर के साथ आने वाले लेखक- नियार्कस, आनेसिक्रिटस, अरिस्टोब्यूलस के विवरण ज्यादा विश्वसनीय व प्रामाणिक हैं।

हिन्द-यवन (इंडो – ग्रीक)

डायोडोरस – यूथीडेमस -डेमेट्रियस

सर्वप्रथम इंडो ग्रीक शासकों ने ही लेख वाले सिक्के और स्वर्ण सिक्के जारी किये।

भारत पर यवनो का प्रथम आक्रमण पुष्यमित्र शुंग के समय हुआ था।

डेमेट्रियस –

इसने 183 ईo पूo  हिन्दुकुश क्षेत्र को पार कर सिंध व पंजाब को जीत लिया और साकल (स्यालकोट) को अपनी राजधानी बनाया।

इसने यूनानी और खरोष्ठी दोनों लिपियों के सिक्के चलाये और भारतीयों के राजा की उपाधि धारण की।

यूक्रेटाइड्स –

इसने भारत के कुछ हिस्सों को जीता और तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया।

मिनाण्डर (मिलिंद)- 160-120 ईo पूo 

इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था यह बौद्ध साहित्य में मिलिंद के नाम से प्रसिद्द है ।

इसके बारे में जानकारी पाली ग्रन्थ मिलिन्दपन्हो से प्राप्त होती है कि बौद्ध भिक्षु नागसेन से हुए वाद-विवाद के बाद इसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। इसकी मृत्यु के समय इसका पुत्र स्ट्रेटो प्रथम अल्प वयस्क था अतः इसकी पत्नी अपने पुत्र की संरक्षिका बनी।

स्ट्रेटो द्वितीय – ने सीसे के सिक्के चलाये।

शक शासक –

भारत में शकों का सबसे प्रसिद्द शासक रुद्रदामन प्रथम (130 -150 ईo पूo ) हुआ।

रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख सर्वप्रसिद्ध है। यह विशुद्ध रूप से संस्कृत में लिखित प्रथम अभिलेख है। इससे पूर्व के सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में लिखित हैं।

हिन्द-पार्थियन

भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में शकों के बाद पार्थियंस का आधिपत्य स्थापित हुआ। जिनका मूल निवास स्थल ईरान था।

गोण्डोफर्निस (20 -41 ईo) –

यह इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।

तख्तेबहि अभिलेख इसी से संबंधित है जो कि खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण है।

सेंट थॉमस (प्रथम ईसाई घर्म प्रचारक ) भारत  में इसी के शासनकाल में आया।

कुषाण

कुषाण चीन की यू ची जाति से सम्बंधित थे जो हूणों के डर से अपने मूल निवास स्थान मध्य एशिया से पलायन कर गए थे और दो शाखाओं में भिवक्त हो गये थे।  इसके कुछ प्रमुख शासक निम्नलिखित है –

कुजुल कडफिसस –

इसके सिक्को पर अंतिम यूनानी शासक हर्मियस की आकृति अंकित है जिससे यह अनुमान लगाया गया है कि ये हर्मियस का सामंत था।

इसने काबुल और कांधार को जीतकर महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।

विम कडफिसस –

इसे कुषाण सत्ता का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है। इसकी उपाधि सर्वलोकेश्वर और महेश्वर थी। इसने सिंधु नदी पार कर पंजाब का कुछ क्षेत्र जीत लिया। इसके सिक्को के आधार पर इसे शैव धर्म का अनुयायी माना जाता है।

कुषाण शासको में इसने ही सर्वप्रथम स्वर्ण सिक्को का प्रचलन प्रारम्भ किया।

कनिष्क (78-105 ईo)-

यह कुषाण वंश का महानतम शासक था इसने 78 ईo में एक नयी संवत शक संवत चलाई जो कि इसके राज्यारोहण की तिथि है।

इसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया और वहां से अश्वघोष, बुद्ध का भिक्षापात्र और एक अद्भुत मुर्गा प्राप्त किया। कश्मीर पर भी कनिष्क का अधिकार था यहाँ पर कनिष्क ने कनिष्कपुर नामक नगर की स्थापना की।

चरक कनिष्क के राजवैद्य, नागार्जुन जैसे बौद्ध विद्वान् और अश्वघोष राजकवि थे।

कनिष्क के अभिलेख – सारनाथ अभिलेख, सुई बिहार लेख, रबातक अभिलेख

चीन के हान राजवंश के सेनापति पान चाउ ने कनिष्क को युद्ध में पराजित किया।

कनिष्क के उत्तराधिकारी – वासिस्क – हुविष्क- कनिष्क द्वितीय -वासुदेव -कनिष्क तृतीय

अरब आक्रमणकारी 

भारत पर होने वाला प्रथम मुस्लिम आक्रमण अरब क्षेत्र की ओर से हुआ था जिसमे सबसे महत्वपूर्ण नाम आता है मोहम्मद बिन कासिम का। हालाँकि कासिम से पहले भी अन्य अरबियन आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करने आये परन्तु वे असफल रहे इसलिए वो इतिहास के पन्नो में भी अपना नाम दर्ज करवाने में असफल रहे।

अरबियन आक्रमण का कारण :-

लंका की ओर से आने वाले अरेबियन जहाजों को देवल के डाकुओं ने लूट लिया था। यही घटना भारत पर अरब आक्रमण का तात्कालिक कारण सिद्ध हुयी। बदले में इराक के सूबेदार हज्जाज ने दाहिर से लूट का हर्जाना माँगा जो दाहिर ने देने से मना कर दिया और यहीं से समस्या शुरू हो गयी। तब हज्जाज ने अपने सेनापतियों को आक्रमण करने को भेजा परन्तु वे असफल रहे और अंत में 17 वर्षीय मुहम्मद बिन कासिम को आक्रमण के लिए भेजा।

मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण  (711-12 ईo)- 

कासिम ने मकराना मार्ग से आक्रमण किया और इसमें उसकी सहायता जाटों, मेड़ों, और कुछ बौद्धों ने भी की। राबर में लड़ते हुए दाहिर की मौत हो गयी उसके बाद उसकी पत्नी ने जौहर कर लिया। ब्राह्मणबाद में दाहिर का पुत्र पराजित हुआ और उसने इस्लाम कबूल कर लिया। मुल्तान कासिम की अंतिम विजय थी।

तुर्की आक्रमण 

यामिनी वंश का संस्थापक अलप्तगीन था। अलप्तगीन का पुत्र सुबुक्तगीन पहला तुर्की शासक था जिसने भारत पर आक्रमण किया।

महमूद गजनबी –

महमूद गजनबी को विद्वानों ने इतिहास जगत का प्रथम सुलतान माना है। इसने भारत पर 1009 से 1027 तक कुल 17 बार आक्रमण किये, इन आक्रमणों का उल्लेख विद्वान हेनरी इलियट ने किया है। इसके भारत पर आक्रमण का प्रमुख कारण यहाँ की सम्पदा और अपार दौलत को लूटना मात्र था वहीँ कुछ विद्वान इसके आक्रमणों को धार्मिक दृष्टि से भी देखते है। उत्बी इसका दरबारी इतिहासकार था जिसने गजनबी के आक्रमणों को जिहाद माना है।  उसकी पुस्तक तारिख ए यामिनी में गजनबी के आक्रमणों की जानकारी मिलती है।

उसके दरबार में और भी बहुत से विद्वान रहते था – फिरदौसी, फरेबी,तुसी,फारुखी, अलबरूनी और अबुल फजल बैहाकी 

हेनरी इलियट के अनुसार गजनबी ने भारत पर कुल 17 आक्रमण किये। खैबर दर्रे को पार कर गजनबी ने भारत पर आक्रमण किया।

  • गजनबी का पहला आक्रमण 1001 ईo में शाही राजवंश पर हुआ। गजनबी का समकालीन एक भारतीय शासक जयपाल था जिसने गजनबी से हारने के बाद आत्महत्या कर ली थी।
  • 1004 में उसने मुल्तान पर आक्रमण किया।
  • 1010 में गजनबी ने नगरकोट को लूटा तथा तलवाड़ी के युद्ध में हिन्दू राजाओं के संघ को पराजित किया।
  • 1014 में थानेश्वर के मंदिर को लूटा।
  • 1015  में कश्मीर का दुर्ग जीतने का प्रयास किया परन्तु असफल रहा। इसका समकालीन शासक राजपाल अपनी राजधानी कन्नौज छोड़कर भाग गया।
  • 1019 में कालिंजर के दुर्ग पर घेरा डाला।
  • 1022 में पंजाब को अपने गजनी साम्राज्य में शामिल कर लिया।
  • 1025 का सोमनाथ का आक्रमण मध्यकालीन इतिहास की बहुत महत्वपूर्ण घटना है इस आक्रमण में गजनबी को अपार धन की प्राप्ति हुयी इस आक्रमण में मंदिर को भी काफी हद तक ध्वस्त कर दिया गया। उस समय गुजरात का शासक भीम प्रथम था जिसने बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।

1027 में जाटों का विद्रोह हुआ जिसका दमन करने के लिए गजनबी अंतिम बार भारत आया।

1030 में गजनबी की मृत्यु हो गयी।

मोहम्मद  गोरी –

गोरी शंसबनी वंश का था। गजनबी के बिपरीत गोरी के आक्रमण का कारण भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करना था। गोरी ने गोमल दर्रे से होते हुए भारत पर आक्रमण किया। इसके सिक्को पर एक ओर कलमा खुदा रहता था और दूसरी ओर लक्ष्मी की आकृति।

  • इसका पहला आक्रमण 1175 में कर्मठी जाति के शियाओं(मुल्तान) पर हुआ।
  • 1178 में गुजरात पर आक्रमण किया तब यहाँ का शासक मूलराज/भीम द्वितीय था जिसने गोरी को पराजित किया। यह भारत में गोरी की प्रथम पराजय थी।
  • 1179 में गोरी का अगला आक्रमण पंजाब पर हुआ जहाँ गजनी वंश का अंतिम शासक खुशरोशाह शासन कर रहा था।
  • 1185 में गोरी ने स्यालकोट पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया।
  • 1188 में गोरी ने भटिंडा अभियान किया और ताबिरहिंद के किले को जीत लिया।
  • 1191 में तराइन का प्रथम युद्ध हुआ जिसमे गोरी हार गया और बुरी तरह घायल हो गया तब एक खिलजी अधिकरी ने गोरी की जान बचा ली।
  • 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई हुयी जिसमे गोरी विजयी हुआ और इसके बाद पृथ्वीराज का क्या हुआ यह विवादस्पद मुद्दा है जिसके सम्बन्ध में 3 मत प्रचलित है।
  • 1194 में चंदावर की लड़ाई में कन्नौज के शासक जयचंद को हराया।
  • 1197 में ऐबक ने गुजरात की राजधानी अनिलहवाड़ को लूटा और इसी लूट के पैसे से उसने इल्तुतमिश को खरीदा।
  • 1202 में ऐबक ने चंदेल शासक परमर्दिदेव को पराजित किया।
  • 1205 में गोरी अँधखुद के युद्ध में ईरान के ख्वारिज्म शासक से बुरी तरह पराजित हो गया और अब इसने पूरी तरह से भारत पर सत्ता कायम करने का मन बना लिया उसी समय पंजाब में खोक्खरों ने विद्रोह कर दिया जिसे दबाने गोरी भारत आया और खोक्खरों का नरसंहार किया।

मृत्यु- सिंधु नदी के तट पर दमयक नामक स्थान पर नमाज पढ़ते समय 15 मार्च 1206 को किसी ने इसकी हत्या कर दी।

तैमूर लंग  –

तैमूर चतगाई तुर्क था परन्तु चंगेज खां से रक्त सम्बन्ध होने का दावा करता था। खैबर दर्रे को पार कर यह भारत में प्रवेश करता है और 1398 ईo में दिल्ली पर आक्रमण करता है। दिल्ली का तात्कालिक शासक नसीरुद्दीन महमूद (तुगलक वंश का अंतिम शासक) गुजरात भाग जाता है अतः तैमूर 15 दिन तक दिल्ली में खूब लूट मार करता है और बाद में मेरठ हरिद्वार आदि शहरों को लूटता हुआ अपनी राजधानी समरकंद लौट जाता है। लौटने से पूर्व वह खिज्र खां को मुल्तान , लाहौर और दीपालपुर का सूबेदार नियुक्त कर जाता है।

-तैमूर के आक्रमण के समय भटनेर की मुस्लिम स्त्रियों ने जौहर किया था।

नादिरशाह (1738-39) –

नादिर शाह फारस का शासक था।

ईरान के नेपोलियन के नाम से प्रसिद्द नादिरशाह के भारत पर आक्रमण के समय मुग़ल शासक मुहम्मदशाह था।

1739  में नादिरशाह और मुग़ल सेना के मध्य करनाल का भीषण युद्ध हुआ जिसमे मुग़ल सेना हार गयी और मुहम्मदशाह को बंदी बना लिया गया।

अवध के नबाब सआदत खां से 20 करोड़ रूपये की मांग की जो न दे पाने के कारण सआदत खां ने विष खाकर आत्महत्या कर ली।

नादिरशाह लगभग डेढ़ महीने तक दिल्ली में रहा और लूटमार करता रहा और बापस जाते वक्त शाहजहां द्वारा बनवाया तख़्त-ए-ताऊस (मयूर सिंहासन)और वेशकीमती कोहिनूर का हीरा भी अपने साथ ले गया।

अहमद शाह अब्दाली –

इसने भारत पर कुल सात आक्रमण किये जिनमे सबसे ज्यादा आक्रमण मुग़ल शासक अहमद शाह के शासनकाल में किये। 1761 में अहमद शाह अब्दाली और मराठो के मध्य पानीपत की तीसरी लड़ाई हुयी।

इसका भारत पर अंतिम आक्रमण 1767 में हुआ।

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