जंतुओं का वर्गीकरण (Classification of Animal Kingdom) – विश्व भर में पायी जाने वाली असंख्य जीव जंतुओं की जातियों व प्रजातियों को अध्ययन व विश्लेषण के लिए कुछ भागों में बाँटा गया है। जीव जंतुओं की तमाम जातियों व प्रजातियों के प्रमुख लक्षण, विशेषताओं और उनमें भेद को उदाहरण सहित इस पोस्ट में समझाया गया है। संसार के समस्त जीव-जंतुओं को 10 वर्गों में विभाजित किया गया है। सभी एक कोशिकीय जीवों को एक ही संघ कार्डेटा में रखा गया है। जबकि बहुकोशिकीय जीवों को 9 संघों में विभाजित किया गया है।
प्रोटोजोआ संघ –
- संसार में पाए जाने वाले समस्त एक कोशिकीय जीवों को इसी संघ में रखा गया है।
- इनका शरीर सिर्फ एक ही कोशिका का बना होता है।
- इनके जीवद्रव्य में एक या अनेक केन्द्रक पाए जाते हैं।
- इस संघ के सदस्य परजीवी और स्व जीवी दोनों प्रकार के होते हैं।
आर्थोपोडा संघ –
- इनके पाद संधि-युक्त होते हैं।
- रुधिर परिसंचरण तंत्र खुले प्रकार से होता है।
- इनकी देहगुहा हीमोसील कहलाती है।
- इनका श्वसन ट्रेकिया गिल्स, बुक लंग्स, सामान्य सतह आदि के माध्यम से होता है।
- प्रायः ये एकलिंगी होते हैं और निषेचन शरीर के अंदर होता है।
उदाहरण – मक्खी, मच्छर, मधुमक्खी, टिड्डा, तिलचट्टा, खटमल, केकड़ा, झींगा मछली
मोलस्का संघ –
- इन जंतुओं में श्वसन गिल्स या टिनीडिया से संपन्न होता है।
- इनमे सदैव कवच उपस्थित रहता है।
- आहार नाल पूरी तरह से विकसित रहती है।
- इस वर्ग के जीवों का रक्त रंगहीन होता है।
- इनमे उत्सर्जन वृक्कों के द्वारा होता है।
उदाहरण – घोंघा, सीपी
पोरिफेरा संघ –
- इस संघ के जंतु खारे पानी में पाए जाने वाले जीव हैं।
- इनके शरीर पर असंख्य छिद्र पाए जाते हैं।
- ये जीव बहु कोशिकीय होते हैं।
- शरीर में एक गुहा (स्पंज गुहा) पायी जाती है।
उदाहरण – स्पंज, साईकन, मायोनिया
प्लैटीहेल्मिन्थीज संघ –
- इन जीवों में पाचन तंत्र विकसित नहीं होता।
- इनमे उत्सर्जन फ्लेम कोशिकाओं द्वारा होता है।
- इनमे कंकाल, श्वसन अंग, परिवहन अंग आदि की अनुपस्थिति होती है।
- ये उभयलिंगी जंतु होते हैं।
उदाहरण – फीताकृमि, प्लेनेरिया
एस्केल्मिन्थीज संघ –
- ये जीव एकलिंगी होते हैं।
- स्पष्ट आहार नाल एवं मुख व गुदा दोनों उपस्थित होते हैं।
- ये लम्बे, बेलनाकार व अखंडित कृमि होते हैं।
- इनमे उत्सर्जन प्रोटोनफ्रीडिया द्वारा होता है।
उदाहरण – गोलकृमि जैसे – एस्केरिस, थ्रेडवर्म, वुचरेरिया
एनीलिडा संघ –
- इनमे प्रचलन मुख्यतः काइटन की बनी सीटी द्वारा होता है।
- इनमे श्वसन सामान्यतः त्वचा के माध्यम से होता है परन्तु कुछ जंतुओं में क्लोम के द्वारा होता है।
- इनमे आहार नाल पूरी तरह से विकसित पायी जाती है।
- इनका रुधिर लाल होता है।
- इनका उत्सर्जी अंग वृक्क होता है।
- इस वर्ग के जीव एकलिंगी व उभयलिंगी दोनों होते हैं।
उदाहरण – केंचुआ, जोंक
इकाइनोडर्मेटा संघ–
- इस संघ के सभी जंतु समुद्री होते हैं।
- इनमे जल संवहन तंत्र पाया जाता है।
- तंत्रिका-तंत्र में मस्तिष्क विकसित नहीं होता।
- पुनरुत्पादन की विशेष क्षमता पायी जाती है।
उदाहरण – स्टार फिश, समुद्री अर्चिन, समुद्री खीरा, ब्रिटिल स्टार
सीलेन्ट्रेटा (Coelenterata) –
- इसके प्राणी जलीय द्विस्तरीय होते हैं।
- भोजन आदि पकड़ने हेतु मुँह के आस-पास धागे जैसी संरचना पायी जाती है।
उदाहरण – हाइड्रा, जेलीफिश, मूँगा
कार्डेटा संघ –
ऊपर जो जंतुओं का वर्गीकरण (Classification of Animalia) दिया गया है, इससे सम्बंधित कई प्रकार के प्रश्न बनते हैं।
जंतु वर्गीकरण से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य –
- हाइड्रा, जेलीफिश व मूंगा किस संघ के अंतर्गत आते हैं – सीलेण्ट्रेटा संघ
- किस जंतु के जीवद्रव्य में हीमोग्लोबिन का विलय होता है – केंचुआ
- केचुएं में कितने ह्रदय पाते जाते हैं – चार जोड़ी
- काक्रोच के ह्रदय में कितने कक्ष होते हैं – 13 कक्ष
- कीटों में कितने पाद होते हैं – 6
- कीटों के कितने पंख होते हैं – चार
- कौनसा सामाजिक जंतु श्रम विभाजन प्रदर्शित करता है – चींटी