कोशिका (Cell) – खोज, प्रकार, विभाजन

प्रत्येक जीव का शरीर एक सूक्ष्मतम इकाई से निर्मित होता है, जिसे कोशिका (Cell) कहा जाता है। जीवों की आधारभूत संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई को कोशिका कहा जाता है। यह एक विशिष्ट पारगम्य कला से घिरी रहती है। इसमें प्रायः स्वजनन की क्षमता होती है।

कोशिका की खोज

कोशिका की खोज ब्रिटेन के वनस्पति शास्त्री रॉबर्ट हुक ने 1965 ई. में की थी। रॉबर्ट हुक द्वारा किया गया अध्ययन इनकी प्रसिद्ध पुस्तक माइक्रोग्राफिया में मिलता है। जीवित कोशिकाओं के अंदर के संघटन का सर्वप्रथम अध्ययन 1674 ई. में ल्यूवेनहॉक ने किया।

कोशिका विज्ञान (Cytology)

कोशिकाओं व उसके अंदर की वस्तुओं की रचना व कार्यिकी का अध्ययन विज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत किया जाता है उसे Cytology कहते हैं। 19वीं सदी के अंतिम चौथाई काल को कोशिका विज्ञान का क्लासिकल काल कहा जाता है। क्योंकि कोशिका से संबंधित अधिकांश महत्वपूर्ण खोजें इसी काल में हुईं।

कोशिका की आकृति व आमाप

सामान्यतः कोशिकाएं अति सूक्ष्म होती हैं और बिना किसी उपकरण की मदद के नहीं देखी जा सकतीं। सूक्ष्मतम कोशिका का आकार 0.1 माइक्रॉन होता है और ये माइकोप्लाज्मा जीवाणु में पायी जाती हैं। सजीवों में पायी जाने वाली कोशिकाओं की संख्या, आकृति व आमाप में विविधता पायी जाती है। कोशिकी की संख्या के आधार पर जीव दो प्रकार के होते हैं – एककोशिकीय जीव और बहुकोशिकीय जीव। जिन जीवों का शरीर सिर्फ एक ही कोशिका से बना होता है वे एककोशिकीय जीव कहलाते हैं। अमीबा, पैरामीशियम और जीवाणु एककोशिकीय जीव हैं। मनुष्य बहुकोशिकीय जीव की श्रेणी में आता है। बहुकोशिकीय पौधों व जंतुओं में कोशिकाएं अधिकतर गोलाकार होती हैं परंतु उनकी आकृति में बहुत अधिक भिन्नता पायी जाती है। अंडे के केंद्र में पाया जाने वाला पीला पदार्थ भी एक कोशिका है। शुतुर्गमुर्ग का अंडा एक कोशिका का बना होता है और यह सबसे बड़ी कोशिका भी है। इसे बिना किसी उपकरण की मदद से देखा जा सकता है।

कोशिका सिद्धांत

जर्मनी के वनस्पति विज्ञानी एम. जे. श्लाइडेन ने 1838 ई. में और जर्मनी के ही जन्तु विज्ञानी थियोडर श्वान ने 1839 ई. में कोशिका सिद्धांत का प्रतिपादन किया। कोशिका सिद्धांत की प्रमुख बातें –

  • प्रत्येक जीव की उत्पत्ति एक कोशिका से होती है।
  • प्रत्येक जीव का शरीर एक या बहुत सी कोशिकाओं का बना होता है।
  • प्रत्येक कोशिका एक स्वाधीन इकाई है, तथापि सभी कोशिकाएं मिलकर कार्य करती हैं, फलस्वरूप एक जीव बनता है।
  • कोशिका की उत्पत्ति की प्रक्रिया में केंद्रक मुख्य कार्यकर्ता या सृष्टिकर्ता के रूप में भाग लेता है।

कोशिका संबंधी अन्य खोजें –

  • 1774 ई. में फेलिक फोन्टाना ने केंद्रक के अंदर के संघनित भाग केंद्रिका की खोज की।
  • 1831 ई. में रॉबर्ट ब्राउन ने केंद्रक की खोज की।
  • जीवद्रव्य की खोज डुजार्डिन ने की।
  • कोशिका के अंदर पाए जाने वाले अर्द्धतरल दानेदार, सजीव पदार्थ को पुरकिन्जे ने 1839 ई. में जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्मा) नाम दिया।
  • 1838 ई. में एक वनस्पति वैज्ञानकि श्लाइडेन ने बताया कि पादपों का शरीर सूक्ष्म कोशिकओं का बना होता है।
  • 1839 ई. में एक जन्तु वैज्ञानकि श्वान ने बताया कि जंतुओं का शरीर भी सूक्ष्म कोशिकओं का बना होता है।
  • 1855 ई. में विरचो ने बताया कि नई कोशिकाओं का निर्माण पहले से उपस्थित कौशिकाओं से होता है।
  • 1861 ई. में मैक्स शुल्ज ने बताया कि कोशिका प्रोटोप्लाज्म का एक पिंड है जिसमें केंद्रक होता है।
  • 1880 ई. में फ्लेमिंग ने क्रोमेटिन का पता लगाकर कोशिका विभाजन के बारे में बताया।
  • माइटोसिस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1882 ई. में वाल्थर फ्लोमिंग ने किया।
  • 1883 ई. में स्चिम्पर ने पर्णहरित की खोज की।
  • स्ट्रासबर्ग ने 1884 ई. में बताया कि केंद्रक पैतृक लक्षणों की वंशागति में भाग लेता है।
  • 1888 ई. में वाल्डेयर ने गुणसूत्र का नामकरण किया।
  • 1888 ई. में टी. बोवेरी ने तारककाय की खोज की।
  • 1890 ई. में रिचर्ड अल्टमैन ने माइटोकांड्रिया की खोज की और इसे बायो ब्लास्ट का नाम दिया।
  • 1897-98 ई. में बेन्डा ने माइटोकांड्रिया का नामकरण किया।
  • राइबोसोम की खोजन 1955 ई. में जी. ई. पैलेड ने की।
  • लाइसोसोम की खोज 1958 ई. में सी. डी. डवे ने की।
  • गुणसूत्र का सबसे बाहरी भाग पेलिकल कहलाता है।
  • पेलिकल के द्वारा घिरा हुआ भाग मैट्रिक्स कहलाता है।
  • 1998 ई. में कैमिलो गॉल्जी ने गॉल्जी उपकरण (गॉल्जीकाय) की खोज की।

कोशिका के प्रकार

रचना के आधार पर कोशिकाएं दो प्रकार की होती हैं – प्रोकैरियोटिक कोशिका और यूकैरियोटिक कोशिका।

प्रोकैरियोटिक कोशिका

ये सरल रचना वाली कोशिकाएं हैं। इस प्रकार की कोशिकाएं प्रारंभिक कोशिकाओं की श्रेणी में आती हैं। इनमें स्पष्ट केंद्रक का अभाव होता है। इस प्रकार की कोशिका का सबसे अच्छा उदाहरण जीवाणु कोशिका है। इनमें पाया जाने वाला आनुवांशिक पदार्थ (DNA) द्वारा निर्मित गुणसूत्र कोशिका द्रव्य के विशेष क्षेत्र (Nucleoid) में उपस्थित रहता है। इसमें केंद्रक झिल्ली की अनुपस्थिति पायी जाती है। जिसके कारण केंद्रक में पाए जाने वाले पदार्थ जैसे- DNA, RNA, व प्रोटीन आदि कोशिका द्रव्य के संपर्क में रहते हैं। कोशिका द्रव्य में राइबोसोम के कण उपस्थित रहते हैं, किंतु अन्य कोशिकांगों का अभाव रहता है।

यूकैरियोटिक कोशिका

पूर्ण रूप से विकसित कोशिका यूकैरियोटिक कोशिकाएं कहलाती हैं। ये रचनात्मक आधार पर पूर्ण विकसित कोशिकाएं हैं। इस प्रकार की कोशिकाँ जीवाणु, विषाणु और नील-हरित शैवाल को छोड़कर सभी पौधों व जंतुओं में पायी जाती हैं। इनका आकार बड़ा एवं पूर्ण विकसित केंद्रक होता है। केंद्रक चारो ओर से दोहरी झिल्ली से घिरा होता है। कोशिका द्रव्य में झिल्लीयुक्त कोशिकांग उपस्थित होते हैं। इसमें गुणसूत्रों की संख्या एक से अधिक पायी जाती है।

प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक कोशिकाओं में अंतर –

प्रोकैरियोटिक कोशिकायूकैरियोटिक कोशिका
प्रोकैरियोटिक कोशिका -
1 - ये आदिम कोशिकाएं हैं।
2 - इनमें प्रारंभी अविकसित केंद्रक पाया जाता है।
3 - इनमें केंद्रक कला व केंद्रिका नहीं होती।
4 - इनमें झिल्लीयुक्त कोशिका-अंगक जैसे - गॉल्जीतंत्र, इण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम, लाइसोसोम, हरित लवक, माइटोकांड्रिया आदि नहीं होते।
5 - इनमें समसूत्री कोशिका विभाजन नहीं होता।
6 - इनमें श्वसन तंत्र प्लाज्मा झिल्ली में होता है।
7 - इनमें प्रकाश संश्लेषी तंत्र आंतरिक झिल्लियों में होता है तथा हरित लवक अनुपस्थित होता है।
8 - इनमे राइबोसोम 70S प्रकार का होता है।
9 - इनमें कोशिका भित्ति पतली होती है।
10 - इनके कशाभिका में सूक्ष्म तंतु होते हैं तथा 9 + 2 व्यवस्था नहीं होती।
11 - इनमें कोशिकाद्रव्यी गति स्पष्ट नहीं होती है।
12 - इनमें रिक्तिका नहीं होती।
13 - इनमें लैंगिक जनन नहीं होता।
14 - इनमें कोशिका विभाजन विखंडन या मुकुलन द्वारा होता है।
15 - इनमें केवल एक गुणसूत्र पाये जाते हैं।
1 - ये सुविकसित कोशिकाएं हैं।
2 - इनमें पूर्ण विकसित केंद्रक होता है।
3 - इनमें केंद्रक कला तथा केंद्रिका उपस्थित रहता है।
4 - इनमें झिल्लीयुक्त कोशिका-अंगक जैसे - गॉल्जीतंत्र, इण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम, लाइसोसोम, हरित लवक, माइटोकांड्रिया आदि नहीं होते।
5 - इनमें समसूत्री कोशिका विभाजन होता है।
6 - इनमे श्वसन तंत्र माइटोकांड्रिया में होता है।
7 - इनमें प्रकाश संश्लेषी तंत्र हरित लवक में होता है।
8 - इनमें राइबोसोम 80S प्रकार का होता है।
9 - इनमें कोशिकाभित्ति मोटी होती है।
10 - इनके कशाभिका में सूक्ष्म नलिकाओं की 9 + 2 व्यवस्था होती है।
11 - इनमें कोशिकाद्रव्यी गति स्पष्ट होती है।
12 - इनमें रिक्तिका उपस्थित होती है।
13 - इनमें लैंगिक जनन होता है।
14 - इनमें कोशिका विभाजन समसूत्री व अर्द्धसूत्री प्रकार से होता है।
15 - इनमें एक से अधिक गुणसूत्र पाए जाते हैं।

कोशिका की संरचना

कोशिका का निर्माण विभिन्न घटकों से होता है, जिन्हें कोशिकांग कहा जाता है। हर कोशिकांग का एक विशिष्ट कार्य होता है। इन्ही कोशिकांगो के कारण कोशिका एक जीवित संरचना है, जो जीवन संबंधी सभी कार्य करने में सक्षम है। जीवों के सभी प्रकार की कोशिकाओं में एक ही प्रकार के कोशिकांग पाए जाते हैं। कोशिका द्रव्य व केंद्रक को संयुक्त रूप से सम्मिलित रूप से जीवद्रव्य कहा जाता है। अध्ययन की सुगमता के लिए कोशिका को तीन भागों में बांटा गया है – कोशिका झिल्ली, कोशिका द्रव्य, केंद्रक।

कोशिका झिल्ली

प्रत्येक कोशिका के बाहर चारो ओर एक पतली, लचीली व मुलायम झिल्ली होती है। यह लिपिड व प्रोटीन की बनी होती है। इसमें दो परत प्रोटीन की और इनके बीच एक परत लिपिड की रहती है। इसे कोशिका झिल्ली या प्लाज्मा झिल्ली कहा जाता है। यह झिल्ली जीवित व अर्द्धपारगम्य होती है। कुछ ही पदार्थ इसके आर या पार आ जा सकते हैं। अतः इसे चयनात्मक पारगम्य झिल्ली भी कहा जाता है। कोशिका झिल्ली कोशिका का निश्चित आकार बनाए रखने में मदद करती है। साथ ही यह कोशिका को यांत्रिक सहारा भी प्रदान करती है।

कोशिका भित्ति

दूसरी ओर पादप कोशिकाएं एक मोटे व बड़े आवरण से चारो ओर से घिरी होती हैं, इसे कोशिका भित्ति कहा जाता है। यह मुख्यतः सेलुलोज की बनी होती है। अर्द्धपारगम्य के स्थान पर ये पारगम्य, कड़ी व निर्जीव होती है। यह पादप कोशिका को एक निश्चित रूप, सुरक्षा व यांत्रिक सहारा देती है। यह कोशिका झिल्ली की रक्षा करती है और उसे सूखने से बचाती है।

कोशिका द्रव्य

कोशिका भित्ति व केंद्रक के बीच पाया जाने वाला जीवद्रव्य का भाग कोशिका द्रव्य कहलाता है। यह एक बेहद गाढ़ा पारभासी व चिपचिपा पदार्थ है। इसमें अनेक निर्जीव कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। कोशिका द्रव्य में अनेक रचनाएं (कोशिकांग) उपस्थित होते है, जिसके अलग-अलग कार्य हैं। कोशिका द्रव्य में पाये जाने वाले कोशिकांग निम्नलिखित हैं –

अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (चिकनी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका, खुरदरी अन्तः प्रद्रव्यी जालिका), राइबोसोम, गॉल्जीकॉय, लाइसोसोम, माइटोकॉण्ड्रिया, लवक (वर्णी लवक, अवर्णी लवक, हरित लवक), रसधानी, तारककाय, माइक्रोट्यूब्यूल्स।

केंद्रक –

कोशिका में केंद्रक की खोज 1831 ई. में रॉबर्ड ब्राउन ने की थी। यह कोशिका द्रव्य के बीच उपस्थित एक बड़ी, गोल, व गाढ़ी संरचना है। इसके चारो ओर दोहरी परत की एक झिल्ली होती है जिसे केंद्रक कला या केंद्रक झिल्ली कहा जाता है। इसमें अनेक केंद्रक छिद्र होते हैं। प्रत्येक जीवित कोशिका में एक केंद्रक पाया जाता है, परंतु कुछ कोशिकाओं में एक से अधिक केंद्रक भी पाए जाते हैं। केंद्रक के अंदर केंद्रक द्रव्य भरा होता है। केंद्रक द्रव्य में महीन धागों जैसी एक संरचना क्रोमेटिन जालिका पायी जाती है। ये DNA व प्रोटीन की बनी होती है। कोशिका विभाजन के दौरान क्रोमेटिन जालिका के धागे अलग-अलग हो छोटी-मोटी जड़ जैसी रचना में परिवर्तित हो जाते हैं।

केंद्रक के अन्दर केंद्रक द्रव्य में एक छोटी अंडागार या गोलाकार रचना पायी जाती है, जिसे केंद्रिका कहा जाता है।

पादप कोशिका व जंतु कोशिका में अंतर –

पादप कोशिकाजंतु कोशिका
1 - पादपों में विकसित त्रिस्तरीय कोशिका-भित्ति पायी जाती है जो मुख्य रूप से सेलुलोज की बनी होती है।
2 - कुछ पौधों (जैसे-कवक जीवाणु आदि) को छोड़कर अन्य सभी में पर्णहरित पाया जाता है।
3 - पादप कोशिका में सेन्ट्रोसोम नहीं पाया जाता।
4 - पादप कोशिकाओं में प्रायः लाइसोसोम नहीं पाया जाता है।
5 - पादप कोशिका में रसधानी या रिक्तिका होती है।
6 - अधिकांश पादप कोशिकाओं में तारककेंद्र नहीं होते हैं।
1 - जंतु कोशिका में कोशिकाभित्ति नहीं पायी जाती, जब्कि कोशिका जीवद्रव्य झिल्ली से ढकी रहती है।
2 - जंतुओं में पर्णहरित नहीं पाया जाता।
3 - जंतु कोशिका में केंद्रक के निकट ताराकार सेंट्रोसोम रचना होती है, जो कोशिका विभाजन में सहायता करती है।
4 - जन्तु कोशिका में लाइसोसोम पायी जाती है।
5 - जंतु कोशिका में रसधानी या रिक्तिका नहीं होती है।
6 - अधिकांश जंतु कोशिकाओं में तारककेंद्र होते हैं।

कोशिका विभाजन –

सर्वप्रथम वर्चो ने 1855 ई. में यह स्पष्ट किया कि नवीन कोशिकाओं का जन्म पहले से उपस्थित कोशिकाओं से होता है। वाल्थर फ्लोमिंग ने कोशिका विभाजन का नाम माइटोसिस रखा। सामान्य तौर पर कोशिका विभाजन दो प्रकार (समसूत्रा विभाजन और अर्द्धसूत्री विभाजन) से होता है। इसके अतिरिक्त कोशिका विभाजन एक अन्य प्रकार (असूत्री विभाजन) से भी होता है। अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन की खोज सर्वप्रथम Weismann ने की। लेकिन इसका नामकरण 1905 ई. में फार्मर व मूर ने किया। इस प्रकार का विभाजन केवल जनन कोशिकाओं में होता है। इस प्रकार के विभाजन के माध्यम से जंतुओं में शुक्राणु व अंडाणु बनते हैं। वहीं पादपों में नर व मादा युग्मक बनते हैं। आदिम जीवों जीवाणुओं, कवक, शैवाल व प्रोटोजोआ में असूत्री विभाजन देखने को मिलता है। इसे प्रत्यक्ष केंद्रक विभाजन भी कहा जाता है। समसूत्री विभाजन को परोक्ष केंद्रक विभाजन कहा जाता है। समसूत्री विभाजन को पांच भागों में बांटा गया है – इंटरफेज, प्रोफेज, मेटाफेज, एनाफेज, टेलोफेज।

समसूत्री विभाजनअर्द्धसूत्री विभाजन
1 - यह कायिक कोशिकाओं में होता है, जिसके फलस्वरूप जीवों (जंतु व पादप) में वृद्धि व टूटे-फूटे भागों में मरम्मत होती है।
2 - यह विभाजन एक चरण में ही पूर्ण हो जाता है।
3 - इसमें क्रॉसिंग ओवर नहीं होता है।
4 - इसमें पूर्वावस्था अपेक्षाकृत छोटी होती है।
5 - इस विभाजन में गुणसूत्रों के जोड़े नहीं बनते।
6 - इसमें संतति कोशिकाओं की गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिकाओं को बराबर रहती है।
7 - इस प्रकार के विभाजन में अर्द्धसूत्र लंबे व पतले रहते हैं।
8 - पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति अवश्य बनती है।
9 - इस विभाजन के परिणामस्वरूप दो संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है।
1- यह केवल जनन कोशिकाओं में होता है, जिसके फलस्वरूप इसके द्वारा जीवों में एक पीढ़ी के गुण अगली पीढ़ी में जाते हैं।
2 - यह विभाजन दो चरणों में पूर्ण होता है।
3 - इस विभाजन में गुणसूत्र के अर्द्धगुणसूत्रों का आदान प्रदान होता है तथा क्रॉसिंग ओवर होता है।
4 - वूर्वावस्था काफी बड़ी होने से उसे पांच उपअवस्थाओं में विभाजित किया जाता है।
5 - इसमें समजात गुणसूत्र के जोड़े बनते हैं, इसे युग्मित गुणसूत्र कहते हैं।
6 - इसमें संतति कोशिकाओं की गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिकाओं के आधी रह जाती है।
7 - इसमें अर्द्ध गुणसूत्र छोटे व मोटे होते हैं।
8 - पादप कोशिकाओं में प्रथम अंत्यावस्था के पश्चान कोशिका भित्ति सदैव नहीं बनती है।
9 - इस विभाजन के परिणामस्वरूप चार संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है।

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