चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव को माना जाता है। इनकी प्रारंभिक राजधानी अहच्छत्रपुर थी। बाद में अजयराज के समय अजमेर इनकी राजधानी बनी। इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक विग्रहराज चतुर्थ था। इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक पृथ्वीराज तृतीय था। ये शाकंभरी नामक स्थानीय देवी के उपासक थे इसलिए ये शाकंभरी के चौहान भी कहलाये। चौहानों का उदय जांगल देश में हुआ था जिसे सपादलक्ष के नाम से भी जाना जाता था। इस वंश के प्रारंभिक शासक कन्नौज के प्रतिहार शासकों के सामंत थे।
वासुदेव –
सपादलक्ष का पहला शासक वासुदेव ही था। इसने शाकंभरी के क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम किया। इसके बाद सामंतराज शासक बना।
वाक्यपतिराज –
महाराज की उपाधि धारण करने वाला यह पहला चौहान शासक था। पृथ्वीराजविजय में इसे 188 विजयों का श्रेय दिया गया है। बिजौलिया लेख में इसे विंध्यशक्ति कहा गया है। इसने चौहानों को इतना शक्तिशाली बना दिया कि वे प्रतिहारों की अधीनता से मुक्ति पा सके। इसने पुष्कर में भव्य शैव मंदिर का निर्माण कराया।
सिद्धराज –
इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। इसी के समय चौहान शासक प्रतिहारों की अधीनता से मुक्त हुए।
विग्रहराज द्वितीय –
सही मायने में इसे ही चौहान वंश का स्वतन्त्र शासक माना जा सकता है। इसने गुजरात के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित किया तथा भृगुकच्छ में आशापुरी देवी का मंदिर बनवाया।
इसके बाद दुर्लभराज द्वितीय, गोविन्दराज द्वितीय, दुर्लभराज तृतीय/वीरसिंह, विग्रहराज तृतीय, पृथ्वीराज प्रथम, अजयराज, अर्णोराज क्रमशः शासक बने।
विग्रहराज चतुर्थ –
इसकी उपाधि वीसलदेव थी। यह चौहान वंश का सबसे प्रतापी शासक था। इसका काल चौहानों का स्वर्णकाल कहलाता है। इसने तोमर शासक तंवर को पराजित कर ढिल्लिका (दिल्ली) पर चौहानों की सत्ता स्थापित की। इसने दिल्ली का विलय न कर उसे मध्यवर्ती राज्य के रूप में रखा। दिल्ली को जीतकर तोमरों को अपना सामंत बना लेना इसकी सबसे महत्वपूर्ण सफलता थी। इसकी उपलब्धियों का उल्लेख दिल्ली-शिवालिक स्तंभ लेख में मिलता है। इसने लाहौर में यामिनी वंश की शक्ति को नष्ट किया था। इसने तुर्क शासक खुशरूशाह को भी पराजित किया था। ललित विग्रहराज नाटक के लेखक सोमदेव इसी के दरबार में थे। इसने अजमेर के पास वीसलसागर और वीसलपुर नामक नगर बसाये। एक जैन आचार्य के कहने पर इसने एकादशी को जीवहत्या बंद करा दी।
इसके बाद अपरगांगेय, पृथ्वीराज द्वितीय, सोमेश्वर शासक बने। इनके बाद सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज तृतीय शासक बना।
पृथ्वीराज तृतीय (1177-92 ईo) –
यह चौहान वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। यह अपने समय का प्रसिद्ध धनुर्धर भी था, इसे शब्दभेदी बाण चलाने में महारथ हासिल थी। भारतीय इतिहास में इसी राजपूत राजा को पृथ्वीराज चौहान या रायपिथौरा के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीराज चौहान 1177 ईo में अजमेर का शासक बना। प्रारम्भ में इसकी माता कर्पूरदेवी ने मंत्री कैम्बास की सहायता से इसकी संरक्षिका के रूप में प्रशासन सम्हाला। 1182 ईo में इसने चंदेल शासक परमर्दिदेव को पराजित कर उसकी राजधानी महोबा पर अधिकार कर लिया। इसी युद्ध में पृथ्वीराज के शत्रु गहड़वाल शासक जयचंद ने आल्हा व ऊदल नामक सरदारों को चन्देलों की सहायता के लिए भेजा था। 1182 ईo में इसके नाना अनंगपाल ने इसके पक्ष में दिल्ली का सिंघासन त्याग दिया। इस तरह ये भारत का शासक बन गया। फिर भी इसने अपना प्रशासन अजमेर से ही देखा और अपने भाई गोविन्दराय को दिल्ली का सूबेदार नियुक्त किया। इसकी राजसभा में जयनायक, विश्वरूप, विद्यापति गौड़ और राजकवि चंदवरदाई रहता था। चन्दवरदाई की पृथ्वीराज रासो को हिंदी साहित्य के महाकाव्य का दर्जा प्राप्त है।
1186 ईo में इसने गुजरात के चालुक्य शासक भीम द्वितीय पर आक्रमण किया। जयचंद ने कन्नौज में राजसूय यज्ञ एवं अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया। इस आयोजन में उसने पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया। अतः पृथ्वीराज भरी सभा से संयोगिता को बलपूर्वक उठा ले गया। यही कारण था कि तराइन की दूसरी लड़ाई में जयचंद ने गोरी के विरुद्ध चौहानों का साथ नहीं दिया। पृथ्वीराज ने तराइन की पहली लड़ाई 1191 ईo में गोरी को हरा दिया। परन्तु 1192 ईo में तराइन की दूसरी लड़ाई में गौरी से पराजित हुआ। उसके बाद उसकी मृत्यु के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है। इसके बाद भारत में तुर्की राज की स्थापना हुयी।
गोविन्द –
पृथ्वीराज के बाद गौरी ने उसके पुत्र गोविन्द को अजमेर की गद्दी पर बिठाया। परन्तु कुछ समय बाद वहां विद्रोह हो गया। 1192 ईo कुतुबुद्दीन ऐबक ने चौहानों का दमन कर दिल्ली को अपने अधिकार में ले लिया।