कोहिनूर हीरा ( Koh-i-Noor Diamond ) के बारे में पूरी जानकारी – कोहिनूर ( फ़ारसी: कोह ए नूर ) हीरा दुनिया की बेशकीमती वस्तुओं में शुमार एक नायाब रत्न है। इसका इतिहास पूरी तरह से प्राप्त नहीं है। परन्तु अलग अलग समय पर अलग अलग शासकों के काल में इसका जिक्र हुआ है।
कोहिनूर हीरा का इतिहास ( History of Kohinoor Diamond ) :-
इसके जन्म की प्रामाणिक जानकारी किसी के पास नहीं है। परंतु अभी तक सर्वप्रचलित मत यही है कि यह हीरा गोलकुंडा की खान से निकला था।
- सन 1306 ईo में यह सबसे पहले मालवा के शासक रामदेव के पास देखा गया।
- ख़फ़ी खां के अनुसार तेलंगाना के शासक प्रताप रुद्रदेव द्वितीय ने अपनी सोने की मूर्ति बनवाई और उसमे इस हीरे की माला बनाकर यह हीरा मलिक काफूर को भेंट किया था। काफूर ने हीरा अलाउद्दीन खिलजी को सौंपा। अलाउद्दीन ने यह हीरा मुबारक खिलजी को सौंप दिया।
- पानीपत के प्रथम युद्ध 1526 के बाद यह हीरा ग्वालियर के राजा विक्रमजीत सिंह से यह हीरा हुमायूँ को मिला। हुमायूँ ने यह हीरा बाबर को दिया। बाबर ने पुनः हुमायूँ को ही सौंप दिया।
- हुमायूँ के बाद क्रमशः यह हीरा मुग़ल शासकों के राजमुकुट की शोभा बढ़ाता रहा।
- शाहजहाँ को मीर जुमला ने दिया। शाहजहां ने इसे तख़्त ए ताऊस (मयूर सिंहासन) में जड़वा दिया।
- 1739 ईo में नादिर शाह (ईरान का नेपोलियन) ने भारत (मुग़ल बादशाह – मुहम्मदशाह) पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में वह अपार संपत्ति के साथ मयूर सिंहासन (जिसमें कोहिनूर जड़ा था) भी अपने साथ ले गया। इस तरह पहली बार कोहिनूर देश से बहार चला गया।
- 1809 ईo के लगभग अफगानिस्तान के विस्थापित शासक शाहशुजा ने रणजीत सिंह को यह हीरा भेंट किया।
- 30 मार्च 1849 ईo को गुजरात के युद्ध में दिलीप सिंह अंग्रेजों से हार गए। तात्कालिक गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने उनसे यह हीरा लेकर महारानी विक्टोरिया को दे दिया।
- कोहिनूर को मुकुट में प्रयोग करने वाली पहली ब्रिटिश महारानी अलेक्जेंड्रिया थीं।
- तब से यह हीरा जो कि 3 टुकड़ों में विभाजित है। पहला टुकड़ा लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम टॉवर ऑफ़ लंदन में है। दूसरा और तीसरा टुकड़ा ब्रिटिश की महारानी के मुकुट की शोभा बढ़ा रहा है।
विशेष :- इसके साथ एक मान्यता जुडी हुयी है। यह हीरा शुरुवात से ही अपने स्वामी के दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण बना और स्वामिनियों के सौभाग्य का सबब। हम कह सकते हैं कि यह हीरा शापित है और जो भी इसे प्राप्त करता है उसके बुरे दिन शुरू हो जाते हैं। इतिहास में यह जिस-जिस के पास रहा उसके जीवन में दुर्भाग्य आया। यही कारण है कि इसके हर स्वामी को इससे हाथ धोना पड़ा। अंत में जब ये अंग्रेजों के हाथ लगा तो उनके साथ भी यही हुआ। जिस ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्यास्त नहीं होता था वो धीरे-धीरे सिमटने लगा और आज उसकी स्थिति उसके ऐतिहासिक साम्राज्य से कोसों दूर है। परन्तु यदि इसे कोई स्त्री धारण करती है तो इसका उस पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। जैसा कि इतिहास के उन तमाम स्वामियों के साथ हुआ।