अलाउद्दीन खिलजी के बारे में पूरी जानकारी

अलाउद्दीन खिलजी ( Alauddin Khalji ) के बारे में पूरी जानकारी – अलाउद्दीन का जन्म 1266 ईo को सिरसा में हुआ था। इसके बचपन का नाम अली या अलीगुर्शप था। इसका राज्याभिषेक 3 अक्टूबर 1296 ईo को बलबन के लालभावन में हुआ। यह रुकनुद्दीन इब्राहिम को हटाकर शासक बना। इसने सिकंदर द्वितीय की उपाधि धारण की। अलाउद्दीन भारतीय इतिहास में अपनी बाजार व्यवस्था के प्रबंधन के लिए विख्यात है। 5 जनवरी 1316 ईo को इसकी मृत्यु हो गयी।  

अलाउद्दीन खिलजी के अभियान :-

अलाउद्दीन एक साम्राज्यवादी सोच वाला शासक था, उसने अपने शासनकाल में बहुत से अभियान किये। उसके प्रमुख अभियान निम्नलिखित हैं –

गुजरात अभियान

यह अभियान 1297-98 ईo में उलूग खां नसरत खां जलेसरी के नेतृत्व में हुआ। यहाँ का शासक कर्णदेव द्वितीय था जिसकी पत्नी कमलादेवी और पुत्री देवल देवी थी। इस आक्रमण का प्रमुख अच्छे घोड़ों की आपूर्ति सुनिश्चित करना था। रस्ते में जैसलमेर को और यहीं पर सोमनाथ को दूसरी बार लूटा गया। यहीं से नसरत खां ने मलिक काफूर नामक हिजड़े को 1000 दीनार में खरीदा। इसीलिए मलिक काफूर को हजार दीनारी कहा जाता था। देवल देवी अपने पिता के साथ देवगिरि भाग गयी। कमलादेवी को अलाउद्दीन ने मल्लिका ए जहाँ की उपाधि दी। 

रणथम्भौर अभियान

1301 ईo में उलूग खां नसरत खां के नेतृत्व में रणथम्भौर का अभियान हुआ। यहाँ का शासक हम्मीर देव था। इसी दौरान नसरत खां की मृत्यु हो गयी। तब अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं आकर नेतृत्व संभाला। यह अभियान भी सफल रहा, हम्मीरदेव मारा गया और स्त्रियों ने जौहर कर लिया। फ़ारसी में जौहर का यह पहला साक्ष्य है।

चित्तौड़ अभियान

1303 ईo में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ अभियान किया। यहाँ का शासक गुहितौल वंश का रतन सिंह था, इसी की रानी पद्मिनी थी। जो मालिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत की प्रमुख नायिका है। इस युद्ध में रतनसिंह अपने सेनापतियों गोरा व बादल के साथ मारा गया और पद्मिनी ने जौहर कर लिया। इस जौहर का उल्लेख अमीर खुसरो नहीं करता है जो कि इस अभियान में अलाउद्दीन के साथ ही था। 1623 ईo में जाटमल ने गोरा-बादल की कथा लिखी। जीत के बाद चित्तौड़ का नाम बदलकर अपने पुत्र खिज्रखां के नाम पर खिज्राबाद रख दिया। यहीं पर अलाउद्दीन ने खिज्र खां को यहाँ का शासक और अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। 

मालवा अभियान

1305 ईo में यह अभियान किया। यहाँ का शासक महलक देव और सेनापति हरनंदकोरा था। यह अभियान ऐनुल मुल्क मुल्तानी के नेतृत्व में हुआ। 

सिवाना अभियान

सिवाना मारवाड़ का सबसे शक्तिशाली दुर्ग था। 1308 ईo में अलाउद्दीन ने यह अभियान किया। यहाँ का शासक शीतलदेव था। जीत के बाद कमालुद्दीन कुर्ग को यहाँ का सूबेदार नियुक्त किया गया। 

अलाउद्दीन खिलजी का दक्षिण अभियान :-

अलाउद्दीन के दक्षिण भारत अभियान का नेतृत्व मलिक काफूर के हाथों में दिया गया। ख्वाजा हाजी को उसका सहायक नियुक्त किया गया। अमीर खुसरो भी काफूर के साथ दक्षिण गए। दक्षिण भारत पर पहला तुर्की आक्रमण जलालुद्दीन खिलजी के समय अलाउद्दीन ने ही किया था। विंध्याचल पर्वत को पार कर दक्षिण भारत जाने वाला पहला सुल्तान अलाउद्दीन ही था। दक्कन का क्षेत्र आर्थिक रूप से संपन्न था जो किसी भी योद्धा के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकता था। अलाउद्दीन खिलजी का दक्षिण अभियान 1307 ईo से शुरू होता है। परंतु अलाउद्दीन का दक्षिण पर पहला आक्रमण 1303 ईo में जूना व छज्जू के नेतृत्व में तेलंगाना पर हुआ। 

देवगिरि अभियान

देवगिरि में ही गुजरात के शासक कर्णदेव और उनकी पुत्री देवलदेवी ने शरण ली थी। 1307 ईo में मलिक काफूर ने यहाँ के शासक रामचंद्र को हरा दिया। अलप खां ने देवल देवी को एलोरा के पास पकड़ लिया और उसका विवाह खिज्र खां से करा दिया गया। अमीर खुसरो की आशिकी में इन दोनों के प्रेम प्रसंग का वर्णन किया गया है। रामचंद्र की पुत्री इल्लपाली से अलाउद्दीन ने विवाह कर लिया। काफूर ने दक्षिण में देवगिरि को अपना मुख्यालय बनाया। 

1312-13 ईo में देवगिरि पर दूसरा अभियान किया क्योंकि सिंघनदेव ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर लिया था। काफूर ने इसकी हत्या कर हरपालदेव को वहां का शासक बना दिया। 

तेलंगाना अभियान

1309 ईo में मलिक काफूर ने तेलंगाना की राजधानी वारंगल पर आक्रमण किया। यहाँ का शासक काकतिये वंश का प्रताप रुद्रदेव द्वितीय  था। प्रताप रुद्रदेव ने अपनी सोने की एक मूर्ति बनवायी और उसमे कोहिनूर हीरे की माला डालकर काफूर को दी। कोहिनूर हीरे का पहला साक्ष्य यहीं से मिलता है। 

होयसल अभियान

1310 ईo में मालिक काफूर ने होयसल (आधुनिक मैसूर) की राजधानी द्वारसमुद्र (आधुनिक हलेविड) पर आक्रमण किया। यहाँ के शासक वीर बल्लाल तृतीय ने आत्मसमर्पण कर दिया।  

पाण्ड्य राज्य का अभियान

पाण्ड्य राज्य ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार नहीं की थी। काफूर के आक्रमण के बाद भी इस राज्य ने अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखा था। यहीं पर काफूर ने लिंगमहादेव के के सोने के मंदिर को लूटा। धन प्राप्ति की दृष्टि से काफूर का यह अभियान सबसे सफल रहा।

अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था :-

अलाउद्दीन खिलजी भारतीय इतिहास में अपनी बाजार व्यवस्था के प्रबंध के लिए प्रसिद्द है। 1303 ईo के अपने चित्तौड़ अभियान के पश्चात इसने बाजार व्यवस्था लागू की। इसका विस्तृत विवरण जियाउद्दीन बरनी की तारिख ए फिरोजशाही से मिलता है। इसने दिल्ली में बदायूँ द्वार के पास तीन प्रकार के बाजार (सराय ए अदल) की व्यवस्था की। 1- अनाज का, 2- कपड़ो का, 3-मवेशियों व गुलामों का बाजार। ये सभी सरकारी धन से सहायता प्राप्त बाजार थे। बाजार का प्रमुख शहना और तीनों बाजारों का प्रमुख शहना ए मंडी कहलाता था। शहना ए मंडी जब न्याय का कार्य करता था तो वह सराय ए अदूल कहलाता था। अलाउद्दीन ने एक नए पद दीवान ए रियासत (वाणिज्यिक मंत्री) का सृजन किया। यह बाजार व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी होता था। इस पद पर पहली नियुक्ति मलिक याकूब की की। अलाउद्दीन की बाजार व्यवस्था को सफल बनाने का श्रेय इसी को जाता है। 

अलाउद्दीन खिलजी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य :-

  • दैवी अधिकार के सिद्धांत को अलाउद्दीन ने चलाया।
  • इसी ने सेना को नकद वेतन स्थाई सेना की नींव रखी।
  • अपने राज्य में मूल्य नियंत्रण प्रणाली को दृढता से लागू किया। जिससे कम वेतन में भी सैनिक अपना खर्च चला सकें।
  • घोड़े दागनेसैनिकों का हुलिया लिखवाने की प्रथा की शुरुवात इसी ने की।
  • इसके शासनकाल में 1297 से 1306 ईo तक 6 मंगोल आक्रमण हुए। 
  • इसने भूराजस्व की दर को बढाकर 1/2 भाग कर दिया।
  • इसने खम्स (लूट का माल) में सुल्तान के हिस्से को 1/4 से बढ़कर 3/4 भाग कर दिया।
  • बेईमानी रोकने के लिए कम तौलने वाले के शरीर से उतना ही मांस काट लेने का आदेश दिया।
  • अलाई दरवाजा, सीरी का किला, हजार खंभा महल, जमैयत खाना मस्जिद का निर्माण कराया।
  • अलाई दरवाजे को इस्लामी वास्तुकला का रत्न कहा जाता है।
  • वस्तुओं के परमिट जारी करने के लिए परवाना नवीस नामक अधिकारी की नियुक्ति की।
  • चराई कर दुधारू पशुओं पर लगाया जाता था।

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