टीपू सुल्तान और आंग्ल मैसूर युद्ध

टीपू सुल्तान और आंग्ल मैसूर युद्ध – टीपू सुल्तान ( Tipu Sultan ) का पूरा नाम सुल्तान फ़तेह अली ख़ान साहिब था। ये टीपू साहिब व मैसूर का शेर उपनामों से भी जाना जाता है। पिता हैदर अली की मृत्यु के बाद 1782 ईo में यह मैसूर का शासक बना। यह एक शिक्षित, योग्य व दूरदर्शी व्यक्ति था। इसने अपने पिता के विपरीत सुलतान की उपाधि धारण की और 1787 ईo में अपने नाम के सिक्के चलवाये। इसके द्वारा चलाये सिक्कों पर हिंदू देवी-देवताओं की आकृति तथा हिंदू संवत मिलती है। श्रृंगेरी के जगतगुरु शंकराचार्य के सम्मान में मंदिरों के पुनर्निर्माण हेतु धन दिया। इसने प्रशासनिक व्यवस्था में पाश्चात्य व्यवस्था का मिश्रण किया। ऐसा करने वाला यह पहला भारतीय सुल्तान था। 4 मई 1799 ईo को चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध में टीपू अंग्रेजों की संयुक्त सेना से लड़ता हुआ मारा गया। 

  • फ़्रांसिसी क्रांति से प्रभावित होकर इसने श्रीरंगपट्टनम में जैकोबियन क्लब की स्थापना की। स्वयं इसका सदस्य भी बना।
  • इसने अपनी राजधानी में मैसूर व फ़्रांस की मैत्री का प्रतीक स्वतंत्रता का वृक्ष लगाया।
  • 1796 ईo में इसने एक नौसेना बोर्ड का गठन किया। 
  • ये उद्योगों की स्थापना में भी रूचि लेता था।
  • इसने जमींदारी व्यवस्था को समाप्त कर सीधे रैय्यत से संपर्क स्थापित किया।

अंग्रेजों से संघर्ष : आंग्ल मैसूर युद्ध

अंग्रेजों व मैसूर के मध्य कुल चार युद्ध लड़े गए इनमे पहले को छोड़कर बाकि तीनों में अंग्रेज विजयी रहे।

प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध (1767-69 ईo)

यह युद्ध अंग्रेजों की आक्रामक नीति और फ्रांसीसियों से हैदर की मैत्री का परिणाम था। हैदर अली ने अंग्रेजों से टक्कर लेने को मराठा व निजाम से संधि कर एक संयुक्त सैनिक मोर्चा बनाया। इस मोर्चे ने अंग्रेजों के मित्र कर्नाटक राज्य पर आक्रमण कर दिया। परन्तु 1767 ईo में जोसेफ स्मिथ ने हैदर अली को चंटामाघाट और त्रिनोमालि के युद्ध में पराजित किया। निजाम ने हैदर का साथ छोड़ दिया और अंग्रेजों की तरफ हो गया। हैदर ने मंगलौर पर आक्रमण कर अंग्रेजी सेना को पराजित कर मद्रास तक पीछे धकेल दिया। 

  • हैदर की शर्तों पर 4 अप्रैल 1769 ईo को मद्रास की संधि के तहत युद्ध समाप्त हुआ। दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित क्षेत्र व कैदी  बापिस कर दिए। अंग्रेजों ने हैदर को किसी दूसरी शक्ति द्वारा आक्रांत होने पर मदद देने का भी वचन दिया। इस संधि से अंग्रेजों की प्रतिष्ठा को भरी धक्का लगा। इस युद्ध से अंग्रेजों के अजेय होने का भ्रम भी टूट गया। 
  • परन्तु 1771 ईo में जब मराठों ने हैदर पर आक्रमण किया तो अंग्रेजों ने उसकी कोई सहायता नहीं की।

द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780-84 ईo)

इस युद्ध के समय एक बार फिर हैदर ने मराठों व निजाम से संधि की। 1773 ईo में अंग्रेजों ने फ़्रांसिसी कब्जे वाले क्षेत्र माहे पर आक्रमण कर हैदर को खुली चुनौती दी। 1780 ईo में हैदर ने कर्नाटक पर आक्रमण जनरल बेली को बुरी तरह परास्त कर अरकाट पर अधिकार कर लिया। इस तरह द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध की शुरुवात हुयी। 1781 ईo में हैदर का सामना सर आयरकूट से पोर्टोनोवा के युद्ध में हुआ। इसे इसे वारेन हेस्टिंग्स ने हैदर के विरुद्ध भेजा था। इस युद्ध में उसने हैदर को परास्त कर दिया परन्तु उसे इसका कोई तात्कालिक लाभ नहीं हुआ। 

  • 1782 ईo में हैदर एक बार फिर अंग्रेजी सेना को परास्त करने में कामयाब रहा। परन्तु युद्ध क्षेत्र में घायल हो जाने के कारण 7 दिसंबर 1782 ईo को उसकी मृत्यु हो गयी। 
  • हैदर की मृत्यु के बाद युद्ध के सञ्चालन का भार टीपू पर आ गया। इसने अंग्रेजी सेना के ब्रिगेडियर मैथ्यूज को 1783 ईo में बंदी बना लिया। 
  • अंत में मार्च 1784 ईo में मंगलौर की संधि के तहत इस युद्ध की समाप्ति हुयी। यह संधि लॉर्ड मैकार्टनी और टीपू के मध्य हुयी। दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित क्षेत्रों को लौटा दिया। 
  • वारेन हेस्टिंग्स को इस संधि की शर्तें जरा भी पसंद नहीं आयीं। वह चिल्लाया “यह लॉर्ड मैकार्टनी कैसा आदमी है ! मैं अभी भी विश्वास करता हूँ कि वह संधि के बावजूद कर्नाटक को खो देगा”

तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1790-92 ईo)

अब अंग्रेजों ने टीपू पर यह आरोप लगाया कि उसने फ्रांसीसियों से अंग्रेजों के विरुद्ध गुप्त समझौता तथा त्रावणकोण पर हमला किया है। अंग्रेजों ने मिडोज के नेतृत्व में मराठा व निजाम के सहयोग से श्रीरंगपट्टनम पर आक्रमण किया। इसमें टीपू सुल्तान पराजित हुआ। फरवरी 1792 ईo में गवर्नर जनरल कार्नवालिस ने टीपू के श्रीरंगपट्टनम स्थित किले को घेर लिया और उसे संधि के लिए मजबूर किया। 

  • मार्च 1792 ईo में टीपू व अंग्रेजों के मध्य श्रीरंगपट्टनम की संधि संपन्न हुयी। शर्तों के तहत टीपू को अपना आधा राज्य अंग्रेजों व उनके सहयोगियों को देना था। साथ ही 3 करोड़ रूपये युद्ध के हर्जाने के रूप में अंग्रेजों को देने थे। जब तक टीपू यह रकम नहीं चुका देता, उसके दो पुत्र अंग्रेजों के कब्जे में रहेंगे। इसके बाद राज्य की आर्थिक बहुत ख़राब हो गयी। 
  • इसी युद्ध के बारे में लॉर्ड कार्नवालिस ने कहा ,“अपने मित्रों को शक्तिशाली बनाये बिना हमने अपने शत्रु को कुचल दिया”

चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध (1799 ईo)

1799 ईo में लॉर्ड वेलेजली ने टीपू के पास सहायक संधि का प्रस्ताव भेजा जिसे टीपू ने ठुकरा दिया। इसके बाद वेलेजली ने युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध में अंग्रेजों का नेतृत्व वेलेजली हैरिस और स्टुअर्ट ने किया। इस युद्ध में अंग्रेजों ने निजाम और मराठों से इस शर्त पर समझौता किया कि युद्ध में प्राप्त लाभ को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जायेगा। इसी युद्ध में टीपू ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग लेने की दिशा में प्रयास किये। उसने नेपोलियन से भी पत्र व्यवहार किये। इसी युद्ध में 4 मई 1799 ईo को टीपू सुल्तान अंग्रेजों की संयुक्त सेना से लड़ता हुआ मारा गया। इसके बाद अंग्रेजों ने मैसूर की गद्दी पर फिर से अड्यार वंश के एक बालक कृष्णराय को बिठा दिया। इसी युद्ध की जीत की खुशी में वेलेजली को मार्क्विस की उपाधि दी गयी।

इस युद्ध में जीत के बाद वेलेजली ने दम्भ भरे शब्दों में कहा, “अब पूरब का राज्य हमारे क़दमों में है”

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