उत्तर मुग़ल शासक

उत्तर मुग़ल शासक – मुगलों के इतिहास को हम दो भागों में बांट कर पढ़ते हैं, पूर्व मुग़ल और उत्तर मुगलपूर्व मुग़ल शासकों में बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब का नाम आता है। ये वे शासक थे जिन्होंने देश को समृद्ध बनाने और विस्तार करने के अथक प्रयास किये और सफल भी रहे। औरंगजेब की मृत्यु के बाद के मुग़ल उत्तराधिकारियों में उतनी योग्यता नहीं थी कि वे इस विशाल साम्राज्य को व्यवस्थित कर सकें। इनमें बहादुरशाह, जहाँदारशाह, फर्रूखशियर, रफ़ी उद दरजात, रफ़ी उद दौला, मुहम्मदशाह, अहमदशाह, आलमगीर द्वितीय, शाहजहाँ तृतीय, शाहआलम द्वितीय, अकबर द्वितीय, बहादुरशाह ज़फर।

1707 ईo में अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु के बाद एक बार फिर शहजादों ( मुअज्जम, आजम, कामबख़्श ) में उत्तराधिकार का युद्ध छिड़ गया। गुरु गोविन्द सिंह ने इस उत्तराधिकार युद्ध में बहादुरशाह का साथ दिया। औरंगजेब को स्वयं उत्तराधिकार के लिए युद्ध लड़ना पड़ा था। इसलिए औरंगजेब मरने से पहले वसीयत कर गया था ताकि उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध न हो। मुअज्जम ने 18 जून 1707 ईo को जजाऊ के युद्ध में आजम को पराजित कर मार डाला। जनवरी 1709 ईo में बीजापुर के युद्ध में कामबख़्श को पराजित किया। इस युद्ध में कमबख्श घायल हो गया और अगले दिन उसकी मृत्यु हो गयी।

बहादुरशाह / शाहआलम प्रथम

(1707-12 ईo)

उत्तराधिकार के युद्ध में जीतने के बाद मुअज्जम 1707 ईo में 63 वर्ष की अवस्था में बहादुरशाह के नाम से शासक बना। इसे शाह ए बेखबर भी कहा जाता है। इसने हिंदू शासकों व सरदारों के साथ सहष्णुता की नीति अपनाई। इसने मराठों को दक्कन के सरदेशमुखी दे दी परन्तु चौथ का अधिकार नहीं दिया। इसने साहू को मराठों का विधिवत राजा स्वीकार नहीं किया। 1711 ईo में इसके दरबार में जोसुआ केटेलार के नेतृत्व में एक डच प्रतिनिधि मण्डल आया। 1712 ईo में इसकी मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य फिर गृहयुद्ध में फंस गया। इसी कारण इसका शव 10 सप्ताह बाद दिल्ली में दफनाया गया। इसके चार पुत्र थे – जहाँदारशाह, अजीम उस शान, रफ़ी उस शान, जहानशाह। इस युद्ध में सामंत जुल्फिकार खां की मदद से जहाँदारशाह की जीत हुयी। यही अगला मुग़ल शासक बना।

ओवन सिडनी ने लिखा है “बहादुरशाह अंतिम मुग़ल शासक था जिसके बारे में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं”।

जहाँदारशाह (1712-13 ईo)

उत्तराधिकार युद्ध में अपने तीन भाइयों को हराने के बाद 1712 ईo में यह शासक बना। यह लालकुंवर नामक वैश्या पर अत्यधिक आशक्त था। इसे लम्पट मुर्ख की भी संज्ञा दी जाती है। इसके काल में साम्राज्य का प्रशासन पूरी तरह से वजीर जुल्फिकार के हाथ में था। जुल्फिकार के पिता असद खां को वकील नियुक्त किया गया। अजीतसिंह को महाराजा और जयसिंह को मिर्जा राजा की पदवी इसी समय दी गयी। जहाँदार ने जजिया कर को समाप्त कर दिया। इसने मराठा शासक को दक्कन की चौथ व सरदेशमुखी इस शर्त पर दे दी की उसकी बसूली मुग़ल अधिकारी करेंगे। इसके भतीजे फर्रूखशियर ने सैय्यद बंधुओं की मदद से सिंघासन पर कब्ज़ा कर लिया। बाद में जहाँदारशाह की हत्या कर दी।

फर्रूखसियर (1713-19 ईo)

इसे मुग़ल वंश का घृणित कायर भी कहा जाता है। यह सैय्यद बंधुओं ( अब्दुल्ला खां और हुसैन अली खां ) की मदद से शासक बना। अब्दुल्ला खां को वजीर और हुसैन अली को मीरबख्शी तथा अमीर उल उमरा का पद दिया गया। गद्दी पर बैठते ही इसने जजिया कर समाप्त कर दिया और कई जगह से तीर्थ यात्रा कर हटा दिए। अब फर्रूखशियर के आदेश पर जुल्फिकार खां की हत्या कर दी गयी। फर्रूखशियर ने जयसिंह को सवाई की उपाधि दी। जोधपुर के राजा अजीत सिंह ने अपनी पुत्री का विवाह फर्रूखशियर से कर दिया। 1716 ईo में बंदा बहादुर को दिल्ली में फाँसी दे दी। फर्रूखशियर धीरे-धीरे सैय्यद बंधुओं से ईर्ष्या करने लगा। हुसैन अली ने 1719 ईo में पेशवा बालाजी विश्वनाथ से संधि कर सैन्य सहायता ली और फर्रूखशियर को अपदस्थ कर अंधा बना दिया। 10 दिन बाद इसकी हत्या कर दी गयी।

  • किसी अमीर द्वारा मुग़ल शासक की हत्या का यह पहला प्रमाण है।
  • 1717 ईo में इसने अंग्रेजों को व्यापारिक लाभ का शाही फरमान जारी किया।

रफ़ी उद दरजात (24 फरवरी-4 जून 1719)

सैयद बंधुओ ( किंग मेकर ) की मदद से अगला मुग़ल शासक रफ़ी उस शान का पुत्र रफ़ी उद दरजात बना। यह सबसे कम समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। इसकी मृत्यु क्षय रोग ( टीo बीo ) से हो गयी।

रफ़ी उद दौला या शाहजहाँ द्वितीय

(6 जून-17 सितंबर 1719 ईo)

अब सैय्यद बंधुओं ने रफ़ी उद दौला को गद्दी पर बिठाया। इसने शाहजहाँ द्वितीय की उपाधि धारण की। इसी समय अजीत सिंह अपनी विधवा पुत्री को मुग़ल हरम से बापस ले आये और पुनः हिंदू धर्म में बापसी करा दी। यह अफीम का आदी था। इसकी मृत्यु पेचिस के कारण हो गयी।

मुहम्मदशाह / रौशनअख्तर (1719-48 ईo)

अत्यंत विलासी होने के कारण इसे रंगीला कहा जाता है। इसके काल में सैय्यद बंधुओं का अंत हुआ। 9 अक्टूबर 1720 ईo को हैदर बेग ने हुसैन अली खां की हत्या कर दी। इसमे मुहम्मद अमीन की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसी कारण मुहम्मद अमीन को अगला वजीर नियुक्त किया गया। इसी समय चिनकिचिल खां ( उपाधि : निजामुलमुल्क ) ने 1725 ईo में हैदराबाद की नींव डाली। सआदत खां ने अवध में अपने राज्य को स्वतंत्र किया। इसी तरह राजपूताना क्षेत्र, बंगाल, बिहार व उड़ीसा भी स्वतंत्र हो गए। तख़्त ए ताऊस पर बैठने वाला अंतिम मुग़ल शासक यही था।

  • इसी के समय 1739 ईo में दिल्ली पर नादिरशाह ( ईरान का नेपोलियन ) का आक्रमण हुआ। यह भारत से 70 करोड़ रूपये की धनराशि, मयूर सिंहासन और कोहिनूर को अपने साथ फारस ले गया।

अहमदशाह (1748-54 ईo)

मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद उसका इकलौता पुत्र अहमदशाह गद्दी पर बैठा। इसका जन्म एक नर्तकी से हुआ था। कहा जाता है कि इसके काल में अर्थव्यवस्था इतनी चरमरा गयी कि सेना को वेतन देने के लिए शाही सामान बिकने लगा। जाबिद खां ( हिजड़ा ) की हत्या के बाद इमादुल्मुल्क को वजीर बनाया गया। इसी इमादुल्मुल्क ने अहमदशाह को गद्दी से हटाकर अंधा कर जेल में डाल दिया। इसके बाद जहाँदार के पुत्र आलमगीर द्वितीय को शासक बना दिया।

  • इसी के समय 1748 ईo में अहमद शाह अब्दाली ( वास्तविक नाम – अहमद खां ) का आक्रमण हुआ।

आलमगीर द्वितीय (1754-58 ईo)

इसका प्रारंभिक नाम अजीजुद्दीन था जो आलमगीर द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा। इसके काल में अहमदशाह अब्दाली दिल्ली तक चढ़ आया। बाद में आलमगीर की हत्या कर दी गयी। इसकी मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य के दो अलग-अलग स्थानों ( दिल्ली व बिहार ) पर दो शासक बनाये गए।

  • इसी के समय प्लासी का युद्ध हुआ।

शाहजहाँ तृतीय (1758-59 ईo)

आलमगीर द्वितीय की हत्या के समय उसका पुत्र अली गौहर ( शाहआलम द्वितीय ) बिहार में था। इसी समय इमादुल्मुल्क ने दिल्ली में मुही उल मिल्लर को शाहजहाँ तृतीय के नाम से सिंघासन पर बिठा दिया।

शाहआलम द्वितीय (1759-1806 ईo)

पिता आलमगीर द्वितीय की मृत्यु के समय अली गौहर बिहार में था। इसने वहीं स्वयं को शाहआलम द्वितीय के नाम से बादशाह घोषित कर लिया। इसी ने क्लाइव को बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी दी थी। 1772 ईo में महादजी सिंधिया ने अंग्रेजों के पेंशनभोगी बादशाह को पुनः दिल्ली के सिंघासन पर बिठा दिया। 1788 ईo में गुलाम कादिर ने शाहआलम को अँधा बना दिया। 1806 ईo में इसकी हत्या कर दी गयी।

  • इसी के समय पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761 ईo) और बक्सर का युद्ध (1764 ईo) लड़ा गया।
  • 1765-72 ईo ये अंग्रेजों के संरक्षण में इलाहबाद में रहा।
  • 1772 ईo में मराठों के संरक्षण में दिल्ली पहुंचा और 1803 ईo तक उनका संरक्षण स्वीकार किया।
  • 1803 ईo में इसने पुनः अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर लिया। इस प्रकार मुग़ल शासक अंग्रेजों का पेंशनर बन गया।

अकबर द्वितीय (1806-37 ईo)

ये अंग्रेजों के संरक्षण में बनने वाला पहला मुग़ल बादशाह था। इसके समय तक मुग़ल साम्राज्य लाल किले तक सिमट कर रह गया। इसने राममोहन राय को राजा की उपाधि देकर लन्दन भेजा। इसी के समय 1835 ईo में मुगलों के सिक्के बंद हो गए ।

बहादुरशाह द्वितीय / जफ़र (1837-57 ईo)

यह अंतिम मुग़ल शासक था। यह ‘जफ़र’ उपनाम से शायरी लिखता था इसलिए बहादुरशाह जफ़र कहलाया। 1857 के विद्रोह के बाद इसे गिरफ्तार कर लिया गया। परन्तु आधिकारिक रूप से मुग़ल साम्राज्य का अंत 1 नवंबर 1858 ईo के महारानी विक्टोरिया के घोषणापत्र से हुआ। बहादुरशाह जफ़र को निर्वासित कर रंगून भेज दिया गया। लालकिला स्थित हीरा महल इसी ने बनवाया था। वहां पर 1862 ईo में उनकी मृत्यु हो गयी। वह एक अच्छा गजल लेखक था। उसने लिखा है –

“न किसी की आँख का नूर हूँ, न किसी के दिल का करार हूँ।

जो किसी के काम न आ सका, मैं वो बुझता हुआ चिराग हूँ।।”

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