पर्यावरण और पारिस्थितिकी (Environment and Ecology)

पर्यावरण और पारिस्थितिकी (Environment and Ecology) – पर्यावरण और पारिस्थितिकी विषय हमारे पर्यावरण को जानने के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। साथ ही विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में इससे संबंधित बहुत से प्रश्न पूछे जाते हैं।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी के तहत पढ़े जाने वाले अध्याय :-

  • पर्यावरण एवं सतत विकास
  • पारिस्थितिकी
  • जैव विविधता
  • ग्रीन हॉउस इफैक्ट और जलवायु परिवर्तन
  • ओजोन परत क्षरण
  • वन और वन्य जीव
  • अभ्यारण्य / जैव मण्डल रिजर्व
  • वैकल्पिक ऊर्जा
  • प्रदूषण
  • जल संरक्षण
  • विविध

पर्यावरण (Environment)

पृथ्वी पर हमारे चारो ओर पाए जाने वाला जल, वायु, भूमि, पेड़, पौधे व जीव जंतुओं का समूह ही पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण के सभी घटक आपस में अंतर्क्रिया करते हैं। ये सभी क्रियाएं जिस तंत्र में संचालित होती हैं उसे पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। पर्यावरण एक अविभाज्य समष्टि है। इसकी रचना भौतिक, जैविक व सांसकृतिक तत्वों वाले पारस्परिक क्रियाशील तंत्रों से होती है।

प्रश्न – भारत में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम कब पारित हुआ ?

उत्तर – 1986 ई. में।

धारणीय विकास क्या है ?

वर्तमान की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए संसाधनों को भविष्य के लिए भी बचा कर रखना। प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के लिए वर्तमान पीढ़ी को अगली पीढ़ी का भी सोचने के लिए प्रेरित करता है।

पर्यावरण के तीन संघटक हैं

  • भौतिक या अजैविक संघटक – जल, वायु, स्थल
  • जैविक संघटक – मनुष्य, जंतु, सूक्ष्म जीव, पादप
  • ऊर्जा संघटक – सौर्यिक ऊर्जा व भूतापीय ऊर्जा

पर्यावरण से अभिप्राय क्या है

  • उन संपूर्ण दशाओं का योग जो मनुष्यों को एक समय बिन्दु पर घेरे हुए है।
  • अन्तःसंबंधित होने वाली जैविक, भौतिक, सांस्कृतिक तत्वों की अन्तःक्रियात्मक व्यवस्था
  • जल, वायु, भूमि, पौधे व पशुओं की प्राकृतिक दुनिया जो इनके चारो ओर अपस्थित है।

पारिस्थितिकी (Ecology)

पारिस्थितिकी निशे (Niche) शब्द की संकल्पना सर्वप्रथम जोसेफ ग्रीनल ने 1917 में दी। सर्वप्रथम ए. जी. टांसले द्वारा सन् 1935 में पारिस्थितिकी तंत्र की परिभाषा प्रस्तावित की गयी। इनके अनुसार “पारिस्थितिकी तंत्र भौतिक तंत्रों का एक विशेष प्रकार होता है जिसकी रचना जैविक व अजैविक घटकों द्वारा होती है।” इनके अनुसार पारिस्थितिकी तंत्र खुला/विवृत तंत्र होता है।

पारितंत्र दो प्रकार के होते हैं :- प्राकृतिक और कृत्रिम। तालाब, वन और झील प्राकृतिक पारितंत्र के उदाहरण हैं जबकि खेत और बगीचा कृत्रिम पारितंत्र हैं।

जैव विविधता (Biodiversity)

जैव विविधता शब्द डब्ल्यू. जी. रोसेन द्वारा दिया गया है। यह जैवक संगठन के प्रत्येक स्तर पर उपस्थित विविधता को दर्शाता है। इसका अध्ययन तीन रूपों आनुवंशिक विविधता, जातीय विविधता, पारिस्थितिकीय विविधता में किया जाता है। परन्तु आजकल मानवीय क्रियाकलापों से जैव विविधता का नाश होता जा रहा है। प्राकृतिक आवासों का ह्रास, वनों की कटाई, शिकार, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन औद्योगीकरण इसके प्रमुख कारण हैं।

हरित गृह प्रभाव और जलवायु परिवर्तन (Greenhouse Effect and Climate Change)

हरित गृह प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमे कुछ गैसें किसी गृह के ताप को बढ़ाने का काम करती हैं। कार्बन डाई ऑक्साइड को ग्रीन हाउस गैस कहा जाता है क्योकि ये विश्वव्यापी ताप बढ़ाने का काम करती है। इसके अतिरिक्त मेथेन और नाइट्रस ऑक्साइड भी ग्रीन हाउस गैसों में शामिल हैं।

ओजोन परत क्षरण (Ozone Layer Depletion)

ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल के समताप मंडल में पायी जाती है। ये सूर्य से आने वाले पराबैगनी (UV) विकिरण को अवशोषित कर लेती है।  इसलिए इसे जीवन रक्षक छतरी भी कहा जाता है। ओजोन परत की मोटाई डॉब्सन इकाई द्वारा मापी जाती है। परन्तु वर्तमान में इसका क्षरण बहुत तेजी से हो रहा है जिसके लिए इसके संरक्षण की अति आवश्यकता है। इसके क्षरण के लिए प्रमुख कारक क्लोरीन है। क्लोरीन का एक अणु ओजोन के एक लाख अणुओं को नष्ट कर सकता है। ओजोन परत में छिद्र सर्वप्रथम सन् 1973 में फॉरमैन द्वारा अंटार्कटिका क्षेत्र में देखा गया।

वन एवं वन्य जीव –

वन हमारे पर्यावरण और जीवन के लिए बेहद आवश्यक हैं। वनों की रक्षा के लिए और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए वन्य जीवों का होना अत्यंत आवश्यक है। इसके साथ ही वन किसी भी देश के लिए आर्थिक सम्पदा का भी प्रमुख स्त्रोत होते हैं। संपूर्ण विश्व की लगभग 80% जैव विविधता विषुवतीय वनों में पायी जाती है। पारिस्थितिकी संतुलन के लिए देश के कुल भू-भाग के 33% भाग पर वनों का होना आवश्यक है। वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में इसका दो तिहाई होना आवश्यक है ताकि मृदा अपरदन और भू-स्खलन से बचा जा सके।

अभ्यारण्य / जैवमण्डल रिजर्व –

वन्य जीवों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए अभ्यारण्य व जैवमंडल रिजर्व स्थापित किये जाते हैं। बाघों को समाप्त होने से बचाने हेतु सरकार ने सन् 1973 में बाघ परियोजना की शुरुवात की। भारत का सर्वप्रथम राष्ट्रीय उद्यान जिम कार्बेट नेशनल पार्क है, इसकी स्थापना 1921 में आधुनिक उत्तराखंड में की गयी थी।

वैकल्पिक ऊर्जा –

कच्चे तेल व प्राकृतिक गैस के समाप्त होने के बाद आने वाले ऊर्जा संकट से बचने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा की अवधारणा सामने आयी। पृथ्वी पर बढ़ती आवादी के साथ संसाधनों के तीव्र गति से हो रहे दोहन के कारण यह समस्या उत्पन्न हुयी है। इस समस्या से निपटने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में सौर ऊर्जा एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है। साथ ही इसके उपयोग से किसी भी प्रकार के प्रदूषण की समस्या नहीं।

प्रदूषण (Polution)

मानव क्रिया कलापों द्वारा पर्यावरण में डाले गए जैविक व रासायनिक कचरे को एन्थ्रोपोजेनिक कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कोयला, पेट्रोल, डीजल व अन्य ईंधनों के दहन से निकलने वाले कार्बन व नाइट्रोजन के ऑक्साइड भी पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं।

जल संरक्षण (Water Conservation)

22 मार्च को विश्व जल संरक्षण दिवस मनाया जाता है।

पर्यावरण विज्ञान से संबंधित कुछ प्रमुख शब्दों के प्रथम प्रयोगकर्ता –

  • इको सिस्टम – ए. जी. टांसले
  • इकोलॉजी – अर्नस्ट हैकल
  • बायोस्फीयर – एडवर्ड सुएस
  • पारिस्थितिकी निशे (Niche) – जोसेफ ग्रीनल
  • जैविक विविधता – थॉमस यूजीन लवजॉय
  • जैव विविधता – डब्ल्यू. जी. रोसेन
  • हॉट स्पॉट – नार्मन मायर्स

ग्रीन हाउस इफैक्ट में गैसों का योगदान –

  • जल वाष्प     36-72 %
  • कार्बन डाईऑक्साइड    9-26 %
  • मेथेन    4-9 %
  • ओजोन   3-7 %

पर्यावरणीय सुरक्षा के उपाय –

  • अधिक से अधिक पेड़ों का लगाया जाना।
  • प्राकृतिक संसाधनों के अँधाधुंध दोहन को रोकना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
  • जल को प्रदूषित होने से रोकना।
  • जल शुद्धीकरण की प्रक्रिया को अपनाना।
  • प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करना।
  • कागज के थैलों के प्रयोग को बढ़ावा देना।
  • वातानुकूलन में कमी लाना।

विश्व पर्यावरण दिवस –

हर साल विश्व भर में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पहला विश्व पर्यावरण दिवस साल 1973 में मनाया गया था।

हरित विकास –

W M एडम्स द्वारा लिखित पुस्तक का नाम हरित विकास है। इसका पूरा नाम “Green Development : Environment and Sustainability in a developing World” है। इस पुस्तक के पहले संस्करण को साल 1990 में प्रकाशित किया गया था।

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