लोदी वंश : बहलोल लोदी, सिकंदर लोदी, इब्राहिम लोदी

लोदी वंश (Lodi Dynasty) का संस्थापक बहलोल लोदी अफगानों की एक शाखा शाहुखेल से संबंधित था। अफगान शब्द फ़ारसी भाषा का है जिसका अर्थ होता है – रोना। इसके दादा फिरोज तुगलक के समय भारत आये थे। दिल्ली  सल्तनत का यह पहला अफगान वंश था। सिकंदर लोदी इस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। समस्त लोदी मूल रूप से घोड़े के व्यापारी थे।

बहलोल लोदी (1451-89 ईo) –

दिल्ली सल्तनत में इसका शासनकाल सर्वाधिक (38 वर्ष) रहा। इसका दो बार राज्याभिषेक हुआ। इसका जन्म दौराला में हुआ था। छप्पर गिरने के कारण इसकी माता की मृत्यु के समय इसका जन्म सीजेरियन (सर्जरी) तकनीक से हुआ। इसका पालन-पोषण चाचा सुल्तानशाह ने किया। सुल्तान शाह ने अपने बेटों के विरुद्ध अपने भतीजे बहलोल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। यह पहले लाहौर का तदुपरांत सरहिंद का सूबेदार बना। इसके बाद इसने दीपालपुर और मुल्तान को भी अपने अधिकार में ले लिया। यह 1451 ईo में दिल्ली का शासक बना। यह अपने सरदारों के समक्ष कालीन पर बैठता था। इसने कई हिंदू सरदारों को भी महत्वपूर्ण पद दे रखे थे। लोदी वंश के व्यक्ति पहले मुल्तान व लगमान में बसे। चाचा इस्माइल खां की मृत्यु के बाद इसे सरहिंद की सूबेदारी मिली। इसने जौनपुर के हुसैन शाह शर्की को पराजित पर वहां अपने पुत्र बरबक शाह को नियुक्त किया। इसने दरभंगा के कीरत सिंह को पराजित किया। इसका अंतिम आक्रमण ग्वालियर के विरुद्ध था।

बहलोल लोदी ने मृत्यु से पूर्व अपने तीसरे पुत्र निजाम खां को अपना उत्तराधिकारी चुना गया।

सिकंदर लोदी (1489-1517 ईo) –

इसका मूल नाम निजाम खां था। ये गुलरुखी के नाम से कविताएँ लिखता था। यह एक हिंदू माता जैबंद की संतान था। इसने सरदारों के साथ समानता का व्यवहार करना बंद कर सुल्तान की सर्वोच्चता मानने के लिए बाध्य कर दिया। इसने 1504 ईo में आगरा नगर को बसाया और वहाँ बालगढ़ के किले का निर्माण कराया। 1506 ईo में आगरा को सल्तनत की राजधानी बनाया। इसने बोथन नामक ब्राह्मण को इसलिए जिन्दा जलवा दिया क्योंकि उसने हिंदू व मुस्लिम ग्रंथों को समान रूप से पवित्र कहा था। इसने नियम बनाया कि शिया मुस्लिम ताजिया नहीं निकाल सकते। इसने मुस्लिम स्त्रियों पर पीरों व संतों की मजारों पर जाने पर रोक लगा दी। मस्जिदों को सरकारी संस्थाओं का रूप देकर उन्हें शिक्षा का केंद्र बनाने का प्रयास किया। इसने आयुर्वेद के एक प्रसिद्ध ग्रन्थ का फ़ारसी में फरहंगे सिकंदरी के नाम से अनुवाद कराया। इसके समय गायन विधा के श्रेष्ठ ग्रन्थ लज्जत ए सिकंदरशाही की रचना हुयी। सल्तनत काल में सबसे अच्छी गुप्तचर व्यवस्था इसी की थी। इसने भूमि की माप के लिए गज-ए-सिकंदरी (30 इंच) चलाया। इसने खाद्यान्न पर से जकात हटा लिया। सिकंदरा नामक गाँव इसी ने बसाया। गले की बीमारी के कारण 1517 ईo में आगरा में इसकी मृत्यु हो गयी। गुजरात का महमूद बेंगड़ा और मेवाड़ का राणा सांगा इसका समकालीन था।

इब्राहिम लोदी (1517-26 ईo) –

इब्राहिम लोदी लोदी वंश और सल्तनतकाल का अंतिम शासक था। जब यह आगरा में सुल्तान बना तो सरदारों का एक पक्ष राज्य के विभाजन के पक्ष में था। इसीलिए उन्होंने इब्राहिम के छोटे भाई जलाल खां को जौनपुर की गद्दी पर बिठा दिया। इब्राहिम ने ही सर्वप्रथम विक्रामिदित्य से ग्वालियर को जीतकर सल्तनत में मिलाया। इसने विक्रमादित्य को शमशाबाद की जागीर दे दी। इसने भी तुर्की राजत्व की अवधारणा को अपनाया और राजा के दैवीय अधिकारों की घोषणा की। इसका राणा सांगा (संग्राम सिंह) से 1518 ईo में ग्वालियर के समीप घाटोली में युद्ध हुआ जिसमें ये हार गया। बाबर ने इसे 1526 ईo में पानीपत की प्रथम लड़ाई में पराजित कर भारत में मुग़ल वंश की नींव रखी। यह युद्ध भूमि में मरने वाला दिल्ली सल्तनत का एकमात्र सुल्तान था। पानीपत में ही बाबर ने ईंटों का एक मकबरा बनवाकर इब्राहिम को उसमे दफना दिया।

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