दर्शन क्या है ? दर्शन का अर्थ एवं परिभाषा (What is Philosophy)

दर्शन क्या है ? (What is Philosophy) – दर्शन शास्त्र को पश्चिम में ‘फिलॉसफी‘ (Philosophy) कहते हैं। तो आइए पहले पाश्चात्य दृष्टिकोण से फिलॉसफी या दर्शन को समझने का प्रयास करते हैं। उसके बाद भारतीय दृष्टिकोण से दर्शन (Philosophy) को समझेंगे।

फिलॉसफी शब्द दो शब्दों (फिलॉस तथा सौफिया) से मिलकर बना है। ‘फिलॉस’ का अर्थ होता है ‘प्रेम‘ और ‘सौफिया’ का अर्थ है ‘ज्ञान‘ अर्थात फिलॉसफी का अर्थ ‘ज्ञान के प्रति प्रेम’ या ‘विद्या के प्रति अनुराग या विद्यानुराग’ होता है।

जबकि भारत में फिलॉसफी को ‘दर्शन‘ कहा जाता है। दर्शन शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की ‘दृश्‘ धातु से हुई है जिसका अर्थ ‘देखना‘ या ‘जिसके द्वारा देखा जाय‘ होता है या ‘‘दृश्यते यथार्थ तत्वमनेन’’ अर्थात् जिसके द्वारा यथार्थ तत्व की अनुभूति हो वही दर्शन है। अर्थात भारत में दर्शन उस विद्या को कहा जाता है जो ‘तत्व’ का साक्षात्कार कराती है। उपनिषदों के अनुसार – “दृश्यते अनेन इति दर्शनम्।

मनुष्य में ‘चिन्तन’ करने का गुण विद्यमान है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जो ‘सोच’ सकता है। सोचने के गुण के कारण ही मनुष्य पशुओं से भिन्न है। मानव में विवेक अर्थात बुद्धि की प्रधानता है जिससे वह विश्व की विभिन्न वस्तुओं को देखकर उनके मूल स्वरुप को जानने की कोशिश करता रहा है। मानव की बौद्धिकता उसे अनेक प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए बाध्य करती रही है जो निम्न हैं –

  1. विश्व का स्वरुप क्या है ?
  2. विश्व की उत्पत्ति किस प्रकार और क्यों हुई ?
  3. विश्व का कोई प्रयोजन है अथवा यह प्रयोजनहीन है ?
  4. ईश्वर है अथवा नहीं ?
  5. यदि ईश्वर है तो उसका स्वरुप क्या है ?
  6. ईश्वर के अस्तित्व का क्या प्रमाण है ?
  7. आत्मा क्या है ?
  8. आत्मा का शरीर से क्या संबंध है ?
  9. जीव क्या है ?
  10. जीवन का चरम लक्ष्य क्या है ?
  11. सत्ता का स्वरुप क्या है ?
  12. ज्ञान का साधन क्या है ?
  13. शुभ और अशुभ क्या है ?
  14. उचित और अनुचित क्या है ?
  15. नैतिक निर्णय का विषय क्या है ?
  16. व्यक्ति और समाज में क्या सम्बन्ध है ? इत्यादि।

दर्शन इन्हीं प्रश्नों का युक्तिपूर्वक उत्तर देने का प्रयास है। दर्शन में इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बुद्धि का प्रयोग किया जाता है भावना या विश्वास का सहारा नहीं लिया जाता है। इन प्रश्नों के उत्तर मानव अनादिकाल से देता आ रहा है और भविष्य में भी निरंतर देता रहेगा। इन प्रश्नों में से बहुत से प्रश्नों के बारे में सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी सोचता है और अपने विवेक के अनुसार उत्तर खोजने का प्रयास करता है। इससे यह सिद्ध होता है कि हम सब दार्शनिक तो हैं ही चाहे जानते हों या नहीं। इसी संबंध में हक्सले का एक कथन उल्लेखनीय है कि “हम सबों का विभाजन दार्शनिक और अदार्शनिक के रूप में नहीं, बल्कि कुशल या अकुशल दार्शनिक के रूप में ही सम्भव है।” दर्शन को समस्त विषयों की जननी कहा जाता है। मनुष्य बुद्धि की सहायता जीव एवं जगत के विषय में युक्तिपूर्वक ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इस दृष्टि से ‘दर्शन’ युक्तिपरक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न है। दर्शन एक ऐसी ‘दिव्य-दृष्टि’ प्रदान करता है जो ‘आत्म-दर्शन’ और ‘तत्व-दर्शन’ को सम्भव बनाती है।

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