रस के प्रकार, परिभाषा और उदाहरण – हिंदी के विभिन्न आचार्यों ने रस को अपने-अपने शब्दों में परिभाषित करने की कोशिश की है। परन्तु रस की सबसे प्रचलित परिभाषा भरतमुनि ने दी है। इन्होंने सर्वप्रथम रस का जिक्र अपने नाट्यशास्त्र में लगभग पहली सदी में किया था। भरतमुनि के अनुसार रस की परिभाषा, “विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है।” इनके अतिरिक्त काव्यप्रकाश के रचयिता मम्मट भट्ट के अनुसार, “आलम्बन विभाव से उद्बुद्ध, उद्दीपन से उद्दीपित, व्यभिचारी भावों से परिपुष्ट तथा अनुभाव द्वारा व्यक्त ह्रदय का स्थाई भाव ही रस दशा को प्राप्त होता है।”
रस की विभिन्न परिभाषाओं में प्रयुक्त शब्दों – विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी/संचारी भाव, स्थायी भाव का अर्थ समझना अत्यंत आवश्यक है। किसी स्थिति को देखकर मन में उत्पन्न विकार ही भाव है। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में कुल 49 भावों को प्रकट किया है।
स्थायी भाव –
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, “भाव का जहाँ स्थायित्व हो, उसे ही स्थायी भाव कहते हैं।” भारतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में कुल आठ स्थायी भावों का उल्लेख किया है। भरतमुनि के आठ स्थायी भाव निम्नलिखित हैं – रति, हास, शोक, क्रोध, भय, उत्साह, जुगुप्सा, विस्मय। भरतमुनि के बाद निर्वेद को भी नौवां स्थायी भाव माना गया। इनके बाद के आचार्यों ने भक्ति को 10वां और वात्सल्य को 11वां स्थायी स्वीकार किया।
विभाव –
जिस व्यक्ति, पदार्थ व बाह्य विकार द्वारा अन्य व्यक्ति के ह्रदय में भावोद्रेक किया जा सके, उन कारणों को विभाव कहा जाता है। विभाव के दो भेद होते हैं – आलम्बन विभाव और उद्दीपन विभाव।
अनुभाव –
आलम्बन विभाव और उद्दीपन विभाव के कारण उत्पन्न भावों को बाहर दर्शाने वाले कारक को अनुभाव कहा जाता है। ह्रदय में संचारित भाव का मन, कार्य, वचन की चेष्टा के रूप में प्रकट होना ही अनुभाव है।
व्यभिचारी/संचारी भाव –
संचारी भाव को स्थायी भाव का सहायक माना जाता है जो जो परिस्थितियों के अनुसार घटते व बढ़ते रहते हैं। भरतमुनि ने इनके वर्गीकरण के चार सिद्धांत माने हैं। (1) देश, काल और अवस्था (2) उत्तम, मध्यम और अधम प्रकृति के लोग (3) आश्रय की प्रकृति और वातावरण के प्रभाव (4) स्त्री व पुरुष के अपने स्वाभाव के भेद।
रस के प्रकार या भेद
रस – स्थायी भाव
शृंगार – रति
हास्य – हास
वीर – उत्साह
करुण – शोक
रौद्र – क्रोध
भयानक – भय
बीभत्स – जुगुप्सा
अद्भुत – विस्मय
शांत – निर्वेद
भक्ति – भगवत विषयक रति या अनुराग
वात्सल्य – वत्सलता