तुग़लक़ वंश की जानकारी

तुग़लक़ वंश (Tughlaq Dynasty) की जानकारी – तुगलक वंश के शासकों ने दिल्ली सल्तनत पर सर्वाधिक लम्बे समय तक शासन किया।

गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ईo)

गयासुद्दीन तुगलक ने 07 सितंबर 1320 ईo को अलाउद्दीन खिलजी के हजार स्तंभों वाले महल में प्रवेश किया। 08 सितंबर 1320 ईo को यह दिल्ली की गद्दी पर बैठा और तुगलक वंश की स्थापना की। इब्नबतूता के अनुसार ये तुर्कों की करौना शाखा से था। वहीं मलिक इसे मिश्रित नस्ल का मानता है। फरिश्ता के अनुसार इसकी माता जाट और पिता मलिक तुगलक था। अलाउद्दीन ने इसे दीपालपुर का गवर्नर नियुक्त किया था। इसी के बारे में कहा जाता है कि “वह अपने राजमुकुट के नीचे सैकड़ों पंडितों का शिरस्तान (पगड़ी) छिपाये हुए है।” यह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने नहरों का निर्माण कराया था। इसने हुलिया तथा दाग प्रणाली को कठोरता पूर्वक लागू किया। निजामुद्दीन औलिया ने इसी के संबंध में कहा था, “दिल्ली अभी दूर है।” इसने वारंगल पर हमला किया और दूसरे हमले में सफलता मिली। तब इसने वारंगल का नाम बदलकर सुल्तानपुर रख दिया।

बंगाल अभियान की विजय की ख़ुशी में जौना खां द्वारा अहमद नियाज के निरीक्षण में महलनुमा दरबाजा बनवाया गया था। इसके पहले हाथियों की परेड कराई जानी थी। हाथियों की परेड के दौरान मची भगदड़ से महल ढह गया और उसी में दब कर गयासुद्दीन की मृत्यु हो गयी।

मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51 ईo)

फिरोज तुगलक (1351-1388 ईo) –

यह मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के समय उसके साथ था। जब महत्वपूर्ण अमीरों ने फिरोज को ताज दिया तो पहले उसने हिचकिचाहट महसूस की। बाद में वह मान गया और इसका राज्यारोहण हुआ। उसी समय सल्तनत के वजीर ख्वाजा-ए-जहाँ ने एक बच्चे को सिंघासन पर बिठा दिया और मुहम्मद तुगलक का वंशज करार दिया। फिरोज ने खुतवे में तुगलकों के साथ सल्तनत काल के अन्य सुल्तानों और गोरी का भी नाम शामिल किया। परन्तु कुतुबुद्दीन ऐबक का नाम इसमें शामिल नहीं किया। फिरोज ने दो बार खलीफा से सुल्तान पद की वैद्यता प्राप्त की। इसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर को लूटा। मूर्तियों के टुकड़ों को गौ-मांस में मिलवाया और मुख्य मूर्ति को विजय स्वरुप मदीना भिजवाया।

इसने सभी करों को समाप्त कर शरिया के अनुसार चार कर – जजिया, जकात, खम्स, खराज लगाए। इन चार करों के अतिरिक्त शूर्ष (हक-ए-शर्ब) नामक एक सिंचाई कर भी लगाया जो उपज का 1/10 भाग था। इसने अपने सिक्कों पर अपने पुत्र व उत्तराधिकारी फतह खां का नाम अंकित करवाया। फलों के 1200 बाग़ लगवाए जिससे राजस्व में वृद्धि हुयी। इसने अमीर वर्ग को संतुष्ट करने के लिए राजकीय (सैनिक व असैनिक) पदों को वंशानुगत किया। यह दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने मुस्लिम महिलाओं के संतो की मजार पूजने पर पाबंदी लगा दी। पर्दा प्रथा के प्रचार के लिए राज्य की ओर से प्रोत्साहन दिया। इसने एक ऐसे पंडित को जिन्दा जलवा दिया जो मुस्लिमों के बीच हिंदू धर्म की हिमायत कर रहा था। इसने मेरठ तथा टोपरा से दो अशोक स्तम्भों को दिल्ली मंगवाया। इसने बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह की यात्रा भी की। इसके समय राज्य में दासों की संख्या सर्वाधिक थी।

फिरोज तुगलक के उत्तराधिकारी

फिरोजशाह ने पहले अपने ज्येष्ठ पुत्र फतह खां को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। परन्तु उसकी मृत्यु 1374 ईo में फिरोज के जीवनकाल में ही हो गयी। उसके बाद फिरोज ने अपने दूसरे पुत्र जफ़र खां को उत्तराधिकारी घोषित किया। इसकी मृत्यु भी फिरोज के जीवनकाल में ही हो गयी। इसके बाद 1387 ईo में फिरोज ने शहजादा मोहम्मद को नासिरुद्दीन मुहम्मदशाह  की उपाधि के साथ सत्ता के सारे शाही प्रतीक सौंप दिए। परन्तु यह एक विलासी व्यक्ति था और इसके सैनिकों के अत्याचारों के कारण जनता ने विद्रोह कर दिया। अतः ये सल्तनत छोड़ कर सिरमौर की पहाड़ियों की तरफ भाग गया। अब फिरोज ने अपने पौत्र तुगलक शाह (फतह खां का पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी बनाया।

गियासुद्दीन तुगलक द्वितीय –

फिरोज की मृत्यु के बाद तुगलक शाह सितंबर 1388 ईo  में गियासुद्दीन तुगलक द्वितीय के नाम से सल्तनत का शासक बना।

अबूबकर –

इसी समय फरवरी 1389 ईo में जफ़र खां का पुत्र अबू बक्र भी सुल्तान बना।

नासिरुद्दीन मुहम्मद –

अगस्त 1390 ईo में फिरोज तुगलक का पुत्र मुहम्मद नासिरुद्दीन मुहम्मदशाह के नाम से शासक बना। यह पहले फिरोज के नायब के रूप में कार्य कर चुका था। 1394 ईo में इसकी मृत्यु हो गयी।

सिकन्दरशाह –

अगला शासक अलाउद्दीन था जो सिकन्दरशाह के नाम से मात्र डेढ़ माह के लिए शासक बना।

नासिरुद्दीन महमूद शाह (1394-1412 ईo) –

यह तुगलक वंश का अंतिम सुल्तान और दिल्ली का अंतिम तुर्की शासक भी था। इसी समय दिल्ली का एक और शासक नसरत शाह भी हुआ। परन्तु वह फिरोजाबाद से शासन करता था। इसी समय कहा गया की “जहाँपना की सल्तनत दिल्ली से पालम तक सिमट कर रह गयी।” इसके काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना तैमूर का आक्रमण थी, इस समय सुल्तान गुजरात भाग गया। 1413 ईo में सुल्तान की मृत्यु कैथल में हो गयी। इसके बाद सरदारों ने दौलत खां को सुल्तान बनाया हालाँकि इस समय उसने शाही पदवी धारण नहीं की। 1414 ईo में खिज्र खां ने इसे हटाकर सल्तनत पर कब्ज़ा कर लिया और सैय्यद वंश की नींव डाली।

तैमूर का आक्रमण

तैमूर एक चतगाई तुर्क था, इसकी राजधानी समरकंद थी। खैबर दर्रे को पार कर तैमूर ने भारत में प्रवेश किया। 1398 ईo में तैमूर ने दिल्ली पर आक्रमण किया तो दिल्ली का सुल्तान गुजरात भाग गया। लगातार 15 दिन तक तैमूर ने दिल्ली में लूट-पाट की। बापस जाने से पूर्व उसने खिज्र खां को लाहौर, मुल्तान, दीपालपुर का सूबेदार नियुक्त किया। खिज्र खां दिल्ली पर भी अपना अधिकार बनाये रहा परन्तु नसीरुद्दीन महमूद के आने के बाद वह पीछे हट गया और अपने सूबेदारी क्षेत्रों पर अधिकार बनाये रहा।

अगला वंश – सैय्यद वंश 

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